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सुखोई बनाम F -35

भारत के लिए सुखोई बनाम F -35: कौन सा लड़ाकू विमान सर्वोत्तम विकल्प

 

चर्चा में क्यों:- भारत के सामने अपनी वायुसेना को आधुनिक बनाने की चुनौती है, और इसी संदर्भ में उसे यह फैसला लेना होगा कि उसे अमेरिकी F -35 लड़ाकू विमान खरीदना चाहिए या फिर रूसी सुखोई SU-57 का उत्पादन अपने देश में करना चाहिए। यह निर्णय भारत की सामरिक जरूरतों, वित्तीय स्थिति और विदेशी साझेदारियों पर निर्भर करता है।        

अमेरिका का F 35: एक आधुनिक लेकिन महंगा विकल्प             

F-35 एक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर जेट है, जो उन्नत सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा शेयरिंग जैसी आधुनिक तकनीकों से लैस है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं: 

F 35 के फायदे:

F -35 लाइटनिंग II एक अत्याधुनिक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है, जिसे लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित किया गया है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं: 

स्टेल्थ क्षमता: F -35 की स्टेल्थ तकनीक इसे रडार पर अदृश्य बनाती है, जिससे यह दुश्मन के रक्षा तंत्र को चकमा देने में सक्षम होता है। 

मल्टी-रोल क्षमता: F -35 एक बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है, जो हवाई युद्ध, जमीनी हमले, टोही मिशन और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसी विभिन्न भूमिकाओं में सक्षम है।   

आधुनिक तकनीक: F -35 में उन्नत एवियोनिक्स, सुपरक्रूज़, और वर्टिकल टेकऑफ (F-35B संस्करण) की क्षमता है।   

F 35 के नुकसान:

 F -35 लाइटनिंग II, लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित एक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है, जो अत्याधुनिक तकनीक से लैस है। हालांकि, इसके कुछ महत्वपूर्ण नुकसान भी हैं, जो इस प्रकार हैं:   

1. महंगी कीमत: F -35 की प्रति यूनिट लागत लगभग 8 करोड़ डॉलर (लगभग 670 करोड़ रुपये) है, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे लड़ाकू विमानों में से एक बनाती है।    

2. रखरखाव की जटिलता: F -35 के संचालन और रखरखाव में कई चुनौतियाँ हैं, जिनमें विश्वसनीयता, मेंटेनेंस, परियोजना में देरी, और लागत में वृद्धि शामिल हैं। 2023 में, अमेरिकी वायु सेना ने दुर्घटनाओं के कारण छह F -35 खो दिए, जो इसके संचालन संबंधी गंभीर मुद्दों को दर्शाता है।    

3. को-प्रोडक्शन की अनुमति नहीं: अमेरिका F -35 के सह-निर्माण का अधिकार अन्य देशों को नहीं देता है, जिससे भारत को पूरी तरह अमेरिकी उत्पादन पर निर्भर रहना होगा। यह प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया अभियान के अनुरूप नहीं होगा।   

रूसी सुखोई SU57: भारत के लिए बेहतर विकल्प?

रूस का सुखोई SU -57 एक पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जिसे भारत अपने यहाँ संयुक्त उत्पादन के माध्यम से विकसित कर सकता है।  

SU 57 के फायदे:

सुखोई SU -57, रूस द्वारा विकसित पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है, जो कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।

1. कम लागत: F-35 की तुलना में, SU -57 की प्रति यूनिट लागत लगभग $35 मिलियन से $40 मिलियन (लगभग 290 करोड़ रुपये से 330 करोड़ रुपये) है, जो F -35 की कीमत का आधा है।    

2. संभावित तकनीकी साझेदारी: रूस ने भारत को SU -57 के संयुक्त उत्पादन और स्वदेशी संस्करण के विकास में पूर्ण प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की पेशकश की है, जिससे भारत में उत्पादन और रखरखाव पश्चिमी प्रतिबंधों से अप्रभावित रहेगा। 

3. भारत की जरूरतों के अनुसार मॉडिफिकेशन: संयुक्त उत्पादन के माध्यम से, SU -57 को भारतीय वायुसेना की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जा सकता है, जिससे यह भारत की रक्षा आवश्यकताओं के लिए अधिक उपयुक्त बनता है।          

SU 57 के नुकसान:

सुखोई SU -57, रूस द्वारा विकसित पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है, जो कई उन्नत तकनीकों से सुसज्जित है। हालांकि, इसके कुछ महत्वपूर्ण नुकसान भी हैं:  

1. तकनीकी सीमाएँ: SU -57 में उन्नत एवियोनिक्स, सुपरक्रूज़, और वर्टिकल टेकऑफ (F-35B संस्करण) की क्षमता है। 

2. विश्वसनीयता पर सवाल: SU -57 के विकास और परीक्षण के दौरान कुछ दुर्घटनाएँ हुई हैं, जो इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। उदाहरण के लिए, 10 जून 2014 को, पाँचवें उड़ान प्रोटोटाइप टी-50-5 में लैंडिंग के बाद इंजन में आग लग गई थी, जिससे विमान को गंभीर क्षति पहुँची थी।   

चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य ताकत: भारत की चुनौती

वायुसेना में फाइटर जेट्स की कमी

भारत की वायुसेना में वर्तमान में 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि आवश्यकता 42 स्क्वाड्रन की है। वहीं, चीन और पाकिस्तान अपनी वायु सेनाओं को लगातार मजबूत कर रहे हैं:

  • चीन (2014-2024): 435 नए लड़ाकू विमान जोड़े।
  • पाकिस्तान (2014-2024): 31 नए लड़ाकू विमान शामिल किए।
  • भारत (2014-2024): 151 लड़ाकू विमान कम हो गए।  

स्वदेशी विकल्प: तेजस और AMCA पर भारत का फोकस

तेजस: भारत का स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान (LCA)

  • तेजस, भारत का स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान (LCA), भारतीय वायुसेना की क्षमताओं को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 
  • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित यह विमान निरंतर उन्नति के साथ विभिन्न संस्करणों में विकसित किया जा रहा है।      

AMCA: भारत का भविष्य का स्टेल्थ फाइटर

  • एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) भारत का आगामी पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ लड़ाकू विमान है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया जा रहा है। 
  • इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय वायुसेना को अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित स्वदेशी लड़ाकू विमान प्रदान करना है।    

भारत की मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) योजना

भारत की मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) योजना के तहत, भारतीय वायुसेना (IAF) अपने बेड़े में 114 नए लड़ाकू विमानों को शामिल करने की योजना बना रही है। इस पहल का उद्देश्य वायुसेना की घटती लड़ाकू क्षमता को मजबूत करना और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना है।

प्रमुख दावेदार
राफेल (फ्रांस): 
  • वर्तमान स्थिति: भारतीय वायुसेना पहले से ही 36 राफेल विमानों का संचालन कर रही है, जिससे यह MRFA सौदे में एक मजबूत दावेदार बनता है।
  • विशेषताएं: राफेल एक बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है, जो वायु श्रेष्ठता, जमीनी हमला, टोही और परमाणु निरोध जैसी क्षमताओं से लैस है।
  • तकनीकी हस्तांतरण: फ्रांस ने भारत को राफेल के साथ कुछ हद तक तकनीकी हस्तांतरण की पेशकश की है, जिससे भारतीय रक्षा उद्योग को लाभ हो सकता है।

F-15EX (अमेरिका):

  • प्रस्तावित विकल्प: अमेरिका ने भारत को F-15EX की पेशकश की है, जो आधुनिक एवियोनिक्स, हथियार प्रणालियों और उच्च वहन क्षमता से सुसज्जित है।
  • विशेषताएं: यह विमान लगभग 13 टन हथियार और ईंधन ले जाने में सक्षम है, जो इसे लंबी दूरी के मिशनों के लिए उपयुक्त बनाता है। 
  • तकनीकी हस्तांतरण: F-15EX के मामले में तकनीकी हस्तांतरण पर स्पष्टता की आवश्यकता है, क्योंकि यह भारत के ‘मेक इन इंडिया’ पहल के लिए महत्वपूर्ण है।   

सुखोई-35 (रूस):

  • प्रस्तावित विकल्प: रूस ने भारत को सुखोई-35 की पेशकश की है, जो एक उन्नत पीढ़ी का लड़ाकू विमान है।
  • विशेषताएं: सुखोई-35 सुपरमैन्यूवेरेबिलिटी, लंबी दूरी की मारक क्षमता और आधुनिक रडार प्रणालियों से लैस है।
  • तकनीकी हस्तांतरण: रूस ने भारत के साथ संयुक्त उत्पादन और तकनीकी साझेदारी की संभावना जताई है, जो भारतीय रक्षा उद्योग के लिए लाभदायक हो सकता है।    

भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की बाधाएँ  

भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण में कई महत्वपूर्ण बाधाएँ हैं, जो इसकी संचालन क्षमता और तत्परता को प्रभावित करती हैं। प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:  

1. फंडिंग की समस्या: हालांकि वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में रक्षा मंत्रालय को 6.81 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आवंटन किया गया है, जिसमें पूंजी अधिग्रहण के लिए 1.80 लाख करोड़ रुपये शामिल हैं, फिर भी यह आवंटन सेना की सभी आधुनिकीकरण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त माना जाता है। 

2. विमानों की खरीद में देरी: लड़ाकू विमानों की खरीद और उत्पादन में देरी वायुसेना की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए, राफेल जैसे आधुनिक लड़ाकू विमानों को शामिल करने में सत्रह साल लगे थे, जबकि वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या निर्धारित 45 स्क्वाड्रन से बहुत कम हो गई थी। 

3. विदेशी विमानों पर निर्भरता: स्वदेशी तकनीक और उत्पादन क्षमताओं की कमी के कारण भारत को अपने रक्षा उपकरणों के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे रणनीतिक स्वायत्तता कम होती है। उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन संघर्ष ने S-400 मिसाइल प्रणालियों की आपूर्ति को बाधित किया है, जिससे भारत की विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता की कमजोरी उजागर हुई है।    

भारत के लिए सबसे उपयुक्त विकल्प क्या है?

अल्पकालिक रणनीति: आपातकालीन खरीद

वर्तमान में, भारतीय वायुसेना के पास 31 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि आवश्यकता 42 स्क्वाड्रन की है। इस कमी को तुरंत पूरा करने के लिए आपातकालीन खरीद आवश्यक है। उदाहरण के लिए, 2019 में, भारत ने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की आपातकालीन खरीद की थी, जो अब वायुसेना का हिस्सा हैं। इसी तरह, वर्तमान में भी, आधुनिक विमानों की त्वरित खरीद से वायुसेना की तत्परता में सुधार होगा।

मध्यम अवधि की रणनीति: सह-उत्पादन मॉडल 

मध्यम अवधि में, भारत को विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ सह-उत्पादन (को-प्रोडक्शन) पर ध्यान देना चाहिए। यह न केवल तकनीकी हस्तांतरण को सुनिश्चित करेगा, बल्कि घरेलू रक्षा उद्योग को भी सशक्त करेगा। उदाहरण के लिए, रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के संयुक्त विकास की योजना, हालांकि बाद में भारत ने इसे छोड़ दिया, सह-उत्पादन के महत्व को दर्शाती है। इसके अलावा, भारत और रूस के बीच ब्रह्मोस मिसाइल का संयुक्त विकास एक सफल सह-उत्पादन मॉडल है।

दीर्घकालिक रणनीति: स्वदेशी विकास

दीर्घकालिक में, भारत को स्वदेशी लड़ाकू विमानों के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। तेजस मार्क 1ए और आगामी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) जैसे प्रोजेक्ट्स इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, इन परियोजनाओं में समय पर निष्पादन और गुणवत्ता सुनिश्चित करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, तेजस कार्यक्रम में देरी और लागत वृद्धि ने वायुसेना की योजनाओं को प्रभावित किया है। इसलिए, भविष्य में समयसीमा और बजट का पालन सुनिश्चित करना होगा।

क्या भारत F 35 खरीदेगा?

  • संभावना कम – F -35 बहुत महंगा और अमेरिकी नियंत्रण में रहेगा।
  • स्वदेशी निर्माण प्राथमिकता – भारत लंबी अवधि में आत्मनिर्भरता चाहता है।
  • रूस या अमेरिका? – भारत शायद दोनों विकल्पों से दूर रहकर स्वदेशी विकास पर जोर देगा।   

भारत के लिए लड़ाकू विमानों का केवल आयात ही नहीं, बल्कि स्थानीय निर्माण अधिक महत्वपूर्ण है। इसे पूरा करने के लिए सरकार, रक्षा अनुसंधान संगठन और निजी कंपनियों को मिलकर काम करना होगा।

भविष्य की दिशा:

भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता की दिशा में निम्नलिखित रणनीतियाँ महत्वपूर्ण हैं:

1. तेजस और AMCA को प्राथमिकता देना

स्वदेशी लड़ाकू विमानों का विकास भारतीय रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

तेजस कार्यक्रम: हल्का लड़ाकू विमान (LCA) तेजस, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित, भारतीय वायुसेना में शामिल किया जा रहा है। अब तक 83 तेजस मार्क 1ए विमानों का ऑर्डर दिया गया है, और 97 और विमानों का ऑर्डर जल्द ही दिया जाएगा। 

एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA): यह पांचवीं पीढ़ी का स्वदेशी स्टेल्थ फाइटर जेट है, जिसका विकास कार्य प्रगति पर है। एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) और HAL के संयुक्त प्रयास से विकसित हो रहा यह विमान 2028 तक उड़ान भरना शुरू कर सकता है।    

2. विदेशी तकनीक हस्तांतरण पर जोर देना

  • स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विदेशी तकनीक का हस्तांतरण आवश्यक है। 
  • इससे घरेलू उद्योगों की क्षमता में वृद्धि होगी और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहन मिलेगा। 
  • उदाहरण के लिए, भारत और अमेरिका के बीच GE-404 और GE-414 इंजन के सह-उत्पादन पर समझौता हुआ है, जो तेजस और AMCA परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। 

3. रक्षा बजट और उत्पादन में तेजी लाना

  • रक्षा बजट में वृद्धि और उत्पादन प्रक्रियाओं में तेजी लाना आवश्यक है ताकि परियोजनाएँ समय पर पूरी हों और वायुसेना की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। 
  • सरकार ने 2025-26 के बजट में रक्षा मंत्रालय को 6.81 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें पूंजीगत अधिग्रहण के लिए 1.80 लाख करोड़ रुपये शामिल हैं। 
  • यह आवंटन रक्षा उपकरणों की खरीद और उत्पादन में तेजी लाने में सहायक होगा।

 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. F-35 एक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ मल्टीरोल फाइटर जेट है, जिसे लॉकहीड मार्टिन ने विकसित किया है।
  2. SU-57 की प्रति यूनिट लागत F-35 की तुलना में कम है, जिससे यह लागत प्रभावी विकल्प बनता है।
  3. अमेरिका F-35 के सह-निर्माण और तकनीकी साझेदारी की अनुमति भारत को देता है।

उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 1 और 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

 

स्रोत – बीबीसी हिंदी

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