वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और समाज पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों:- उत्तरी भारत, विशेष रूप से दिल्ली में छाई धुंध केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य संकट है। वायु प्रदूषण को एक मूक हत्यारे के रूप में पहचाना जा रहा है, जो न केवल श्वसन प्रणाली बल्कि हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है।
UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: पर्यावरण पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर सामान्य मुद्दे– जिनके लिए विषय विशेषज्ञता की आवश्यकता नहीं है। मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन–II, III: स्वास्थ्य, संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरण प्रभाव आकलन से संबंधित मुद्दे। |
वायु प्रदूषण क्या है ?
वायु प्रदूषण उस स्थिति को कहते हैं जब वायुमंडल में हानिकारक रसायन, सूक्ष्म कण या जैविक पदार्थों की मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि यह मानव स्वास्थ्य, अन्य जीव-जंतुओं या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है। ये प्रदूषक प्राकृतिक स्रोतों से या मानव गतिविधियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकते हैं।
भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:
1. वाहन उत्सर्जन
- भारत में वाहनों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिससे वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान हो रहा है।
- वाहनों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), और पार्टिकुलेट मैटर (PM) जैसे हानिकारक प्रदूषक शामिल होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, सड़क परिवहन वर्तमान में भारत के ऊर्जा-संबंधी CO2 उत्सर्जन में 12% हिस्सेदारी रखता है और शहरी वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता है।
2. औद्योगिक उत्सर्जन
- लौह एवं इस्पात, चीनी, कागज, सीमेंट, उर्वरक, कॉपर और एल्युमीनियम जैसे विभिन्न उद्योग निलंबित कण पदार्थ (SPM), सल्फर ऑक्साइड (SOx), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) एवं कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत में कोयला आधारित थर्मल पावर स्टेशन (जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी का अभाव है) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के 50% से अधिक, नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के 30%, कण पदार्थ (PM) के लगभग 20% और अन्य मानव-जनित उत्सर्जनों के लिये ज़िम्मेदार हैं।
3. कृषि गतिविधियाँ और पराली जलाना
- विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में धान एवं गेहूँ जैसे अनाज की कटाई के बाद पराली को जानबूझकर जलाना, विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय योगदान देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2023 में पंजाब और दिल्ली के अन्य निकट पड़ोसी राज्यों में इस अभ्यास को हतोत्साहित करने के प्रयासों के तहत पराली जलाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव किया था।
4. ठोस अपशिष्ट का दहन
- ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन (MT) से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा खुले वातावरण में या अनौपचारिक डंप स्थलों पर जलाया जाता है।
- ठोस अपशिष्ट को खुले में जलाने से PM, डाइऑक्सिन (dioxins) और फ्यूरेन (furans) सहित विभिन्न प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।
5. घरेलू ईंधन का उपयोग
- भारत के लगभग 62-65% ग्रामीण परिवार खाना पकाने और ताप प्राप्त करने (हीटिंग) जैसे उद्देश्यों के लिये बायोमास, कोयला एवं केरोसिन जैसे ठोस ईंधन पर निर्भर हैं।
- इन ईंधनों के अधूरे दहन से PM, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) सहित विभिन्न हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।
6. निर्माण गतिविधियाँ
- निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल और मलबा वायु गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
- इनसे उत्पन्न धूल कण वायुमंडल में फैलकर प्रदूषण का कारण बनते हैं।
भारत में वायु प्रदूषण का अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव:
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव
श्वसन तंत्र
- वायु प्रदूषण से खांसी, सांस फूलना, अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) 2024 के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण औसत जीवन प्रत्याशा में 3.6 वर्ष की कमी होती है।
हृदय स्वास्थ्य
- उच्च प्रदूषण स्तर हृदयाघात, स्ट्रोक और उच्च रक्तचाप के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- AIIMS दिल्ली के एक अध्ययन के अनुसार, PM2.5 के स्तर में 10 µg/m³ की वृद्धि से उसी दिन हृदयाघात का जोखिम 2.5% बढ़ जाता है।
अन्य स्वास्थ्य प्रभाव
- वायु प्रदूषण से प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है, जिससे ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
- इसके अलावा, मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे स्ट्रोक और बच्चों में IQ स्तर में कमी हो सकती है।
2. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
उत्पादकता में कमी
- वायु प्रदूषण के कारण श्रमिकों की उत्पादकता में कमी आती है, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
- एक अध्ययन के अनुसार, यदि वायु प्रदूषण प्रतिवर्ष 50% धीमी गति से बढ़ता तो भारत की GDP 4.5% अधिक हो सकती थी।
स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि
- प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के इलाज पर खर्च बढ़ता है, जिससे परिवारों और सरकार दोनों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।
पर्यटन पर प्रभाव
- खराब वायु गुणवत्ता के कारण पर्यटन उद्योग प्रभावित होता है, जिससे विदेशी मुद्रा आय में कमी होती है।
3. पर्यावरण पर प्रभाव
पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
- वायु प्रदूषण से वनस्पतियों और जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे जैव विविधता में कमी आती है।
जलवायु परिवर्तन
- प्रदूषक गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ती है।
मृदा और जल प्रदूषण
- वायुमंडलीय प्रदूषक मृदा और जल स्रोतों में जमा होकर उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, जिससे कृषि उत्पादन और पेयजल स्रोतों पर असर पड़ता है।
भारत में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारी पहल:
1. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- जनवरी 2019 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5) की सांद्रता में 20-30% की कमी का लक्ष्य रखता है।
- इसके तहत 122 गैर-प्राप्ति शहरों (Non-Attainment Cities) की पहचान की गई है, जहाँ वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के लिए कार्य योजनाएँ बनाई गई हैं।
2. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP)
- दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता के आधार पर चरणबद्ध उपाय लागू करने के लिए यह योजना बनाई गई है।
- वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के विभिन्न स्तरों के अनुसार, निर्माण गतिविधियों पर रोक, वाहनों की संख्या में कमी, और स्कूलों को बंद करने जैसे उपाय शामिल हैं।
3. भारत स्टेज VI (BS-VI) उत्सर्जन मानक
- 1 अप्रैल 2020 से पूरे देश में BS-VI उत्सर्जन मानक लागू किए गए हैं, जो वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सख्त मानक निर्धारित करते हैं।
- इन मानकों के तहत वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और पार्टिकुलेट मैटर (PM) के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आई है।
4. इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीति
- सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फेम इंडिया योजना के तहत सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान किए हैं।
- इसका उद्देश्य 2030 तक देश में 30% वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने का है, जिससे वायु प्रदूषण में कमी लाई जा सके।
5. पराली प्रबंधन के लिए पहल
- कृषि अवशेषों के जलने से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने किसानों को हैप्पी सीडर, सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम जैसी मशीनों पर सब्सिडी प्रदान की है।
- इसके अलावा, पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए जागरूकता अभियान और कानूनी उपाय भी किए गए हैं।
6. वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विस्तार
- सरकार ने देशभर में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों की संख्या बढ़ाई है, जिससे वास्तविक समय में वायु गुणवत्ता डेटा उपलब्ध हो सके।
- इसके तहत 2024 तक 500 से अधिक निगरानी स्टेशनों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है।
7. सार्वजनिक परिवहन का सुदृढ़ीकरण
- मेट्रो रेल, बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS) और अन्य सार्वजनिक परिवहन साधनों का विस्तार किया गया है, जिससे निजी वाहनों की संख्या में कमी लाई जा सके और वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय:
1. स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग
- कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों के स्थान पर सौर, पवन और जल विद्युत जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना आवश्यक है।
- भारत सरकार ने 2024 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें से 100 गीगावाट सौर ऊर्जा शामिल है।
2. सार्वजनिक परिवहन का सुदृढ़ीकरण
- सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत करके निजी वाहनों की संख्या कम की जा सकती है, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी।
- दिल्ली मेट्रो का विस्तार और इलेक्ट्रिक बसों का संचालन इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
3. इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा
- सरकार ने फेम इंडिया योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिए सब्सिडी प्रदान की है।
- 2024 तक 15 लाख इलेक्ट्रिक वाहनों के पंजीकरण का लक्ष्य रखा गया है।
4. औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण
- उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना और सख्त उत्सर्जन मानकों का पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने 2024 में 17 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों के लिए नए उत्सर्जन मानक जारी किए हैं।
5. कृषि अवशेष प्रबंधन
- पराली जलाने के स्थान पर किसानों को वैकल्पिक उपाय जैसे हैप्पी सीडर मशीन, बायोमास ऊर्जा उत्पादन और कम्पोस्टिंग के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- पंजाब और हरियाणा में 2024 में पराली जलाने की घटनाओं में 30% की कमी दर्ज की गई है।
6. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन
- कचरे के उचित निपटान, पुनर्चक्रण और कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देकर खुले में कचरा जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- स्वच्छ भारत मिशन के तहत 2024 तक 4,000 से अधिक शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित की गई है।
7. जन जागरूकता और शिक्षा
- वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना और पर्यावरण संरक्षण के प्रति शिक्षा प्रदान करना आवश्यक है।
- 2024 में पर्यावरण मंत्रालय ने ‘स्वच्छ वायु अभियान’ के तहत 100 शहरों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
भारत में वायु प्रदूषण से निपटने की चुनौतियाँ:
1. नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन
- हालाँकि भारत सरकार ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई नीतियाँ और कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन उनके प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (PM) के स्तर में 20-30% की कमी का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन कई शहरों में यह लक्ष्य अभी भी अधूरा है।
2. वित्तीय संसाधनों की कमी
- वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कमी एक प्रमुख बाधा है।
- स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों के पास पर्याप्त धनराशि नहीं होने के कारण प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना और रखरखाव में कठिनाई होती है।
3. जन जागरूकता का अभाव
- वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जन जागरूकता की कमी के कारण लोग प्रदूषणकारी गतिविधियों से बचने के प्रति सचेत नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए, पराली जलाना और कचरा जलाना जैसी प्रथाएँ अभी भी जारी हैं, जो वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
4. अंतर-राज्यीय समन्वय की कमी
- वायु प्रदूषण एक क्षेत्रीय समस्या है, जिसके समाधान के लिए विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय आवश्यक है।
- हालाँकि, राज्यों के बीच समन्वय की कमी के कारण प्रदूषण नियंत्रण उपायों का प्रभाव सीमित हो जाता है।
5. प्रदूषण स्रोतों की निगरानी में कमी
- प्रदूषणकारी स्रोतों की निगरानी के लिए पर्याप्त उपकरणों और तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण वास्तविक समय में डेटा संग्रहण और विश्लेषण में कठिनाई होती है।
- यह नीति निर्माताओं के लिए सटीक निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करता है।
6. कानूनी प्रवर्तन की कमी
- वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाए गए कानूनों और नियमों का सख्ती से पालन नहीं होने के कारण प्रदूषणकारी गतिविधियाँ जारी रहती हैं।
- उदाहरण के लिए, औद्योगिक उत्सर्जन मानकों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की जाती है।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) और ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP):
1. वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)
- वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) एक संख्यात्मक मानक है जो वायु की गुणवत्ता को सरल और समझने योग्य तरीके से प्रस्तुत करता है।
- यह सूचकांक विभिन्न प्रदूषकों जैसे पार्टिकुलेट मैटर (PM10, PM2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), ओज़ोन (O₃), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और अमोनिया (NH₃) के सांद्रण के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
श्रेणियाँ
AQI को छह श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- अच्छा (0-50): वायु गुणवत्ता संतोषजनक है और प्रदूषण का कोई या न्यूनतम जोखिम है।
- संतोषजनक (51-100): वायु गुणवत्ता स्वीकार्य है; कुछ प्रदूषकों के प्रति संवेदनशील लोगों को मामूली असुविधा हो सकती है।
- मध्यम (101-200): संवेदनशील लोगों को श्वसन तंत्र में असुविधा हो सकती है; सामान्य जनसंख्या पर प्रभाव नहीं।
- खराब (201-300): श्वसन रोगियों और बच्चों, वृद्धों को स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं; सामान्य जनसंख्या को असुविधा।
- बहुत खराब (301-400): श्वसन रोगियों को गंभीर प्रभाव; सामान्य जनसंख्या को स्वास्थ्य प्रभाव।
- गंभीर (401-500): स्वस्थ लोगों को भी स्वास्थ्य प्रभाव; संवेदनशील समूहों को गंभीर प्रभाव।
- 2024 में, दिल्ली का औसत AQI ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज किया गया, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, नवंबर 2024 में दिल्ली का औसत AQI 457 तक पहुँच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।
2. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP)
GRAP एक चरणबद्ध कार्य योजना है, जिसे दिल्ली-NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण के स्तर के आधार पर लागू किया जाता है। यह योजना वायु गुणवत्ता में गिरावट के अनुसार विभिन्न उपायों को सक्रिय करती है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।
चरण
GRAP को चार चरणों में विभाजित किया गया है:
- चरण I (AQI 201-300): ‘खराब’ वायु गुणवत्ता के लिए; निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण, कचरा जलाने पर रोक, सड़कों की सफाई आदि।
- चरण II (AQI 301-400): ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता के लिए; डीजल जनरेटर सेट्स पर प्रतिबंध, पार्किंग शुल्क में वृद्धि, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा।
- चरण III (AQI 401-450): ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता के लिए; निर्माण गतिविधियों पर रोक, ईंट भट्टों और हॉट मिक्स प्लांट्स का संचालन बंद।
- चरण IV (AQI >450): ‘गंभीर+’ वायु गुणवत्ता के लिए; ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध, स्कूलों को बंद करना, निजी वाहनों पर सम-विषम योजना।
2024 में GRAP का कार्यान्वयन
नवंबर 2024 में, दिल्ली का AQI ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुँचने पर, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने GRAP के चरण IV को लागू किया। इसके तहत ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध, निर्माण गतिविधियों पर रोक, और स्कूलों को बंद करने जैसे उपाय किए गए।
स्रोत - इंडियन एक्सप्रेस