Email Us

nirmanias07@gmail.com

Call Us
+91 9540676784 +91 9540676200

पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs)

पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs)

चर्चा में क्यों:- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में ‘पारस्परिक टैरिफ’ (Reciprocal Tariffs) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका उद्देश्य देशों के बीच टैरिफ असंतुलन को संतुलित करना है। हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और अन्य देशों द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ को “बहुत अनुचित” बताते हुए 2 अप्रैल से पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इस निर्णय का भारत की अर्थव्यवस्था, विशेषकर निर्यात क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।   

पारस्परिक टैरिफ क्या हैं?

पारस्परिक टैरिफ एक ऐसा शुल्क है, जिसे एक देश दूसरे देश के टैरिफ के जवाब में समान दर से लागू करता है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार में संतुलन स्थापित करना और घरेलू उद्योगों की रक्षा करना है। उदाहरण के लिए, यदि देश ‘क’ अपने उत्पादों पर देश ‘ख’ द्वारा लगाए गए ऊँचे टैरिफ से असंतुष्ट है, तो वह देश ‘ख’ से आने वाले उत्पादों पर समान दर से टैरिफ लागू कर सकता है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संतुलन स्थापित करने में सहायता मिलती है।  

भारत-अमेरिका व्यापार संतुलन:

अमेरिकी अनुमानों के अनुसार, 2024 में भारत के साथ अमेरिका का कुल माल व्यापार अनुमानित 129.2 बिलियन डॉलर था।  2024 में भारत को अमेरिकी माल निर्यात 41.8 बिलियन डॉलर था, जो 2023 से 3.4% ($1.4 बिलियन) अधिक था। 2024 में भारत से अमेरिकी माल आयात कुल 87.4 बिलियन डॉलर था, जो 2023 से 4.5% ($3.7 बिलियन) अधिक था। 2024 में भारत के साथ अमेरिकी माल व्यापार घाटा 45.7 बिलियन डॉलर था, जो 2023 की तुलना में 5.4% ($2.4 बिलियन) अधिक था।     

1. व्यापार संतुलन (Trade Balance):

व्यापार संतुलन किसी देश के निर्यात और आयात के मूल्य के बीच का अंतर होता है। यदि निर्यात आयात से अधिक है, तो इसे व्यापार अधिशेष कहते हैं; यदि आयात निर्यात से अधिक है, तो इसे व्यापार घाटा कहते हैं।

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के लिए भारत के भुगतान संतुलन (Balance of Payments – BoP) के आँकड़े जारी किए। इनके अनुसार, भारत का चालू खाता घाटा (Current Account Deficit – CAD) मामूली रूप से बढ़कर 9.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 1.1%) हो गया है। यह वृद्धि मुख्यतः आयात में वृद्धि के कारण हुई है, जो निर्यात से अधिक रही।  

2. मुद्रा विनिमय दर (Currency Exchange Rate):

मुद्रा विनिमय दर दो देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय का अनुपात होता है, जो बताता है कि एक मुद्रा की कितनी इकाइयाँ दूसरी मुद्रा की एक इकाई के बराबर हैं।

मार्च 2025 में, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.50 के स्तर पर था। यह विनिमय दर पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 3% की गिरावट दर्शाती है, जो विदेशी निवेश में कमी और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण हुई है।   

3. पूंजी प्रवाह (Capital Flow):

पूंजी प्रवाह एक देश से दूसरे देश में निवेश, ऋण या अन्य वित्तीय साधनों के माध्यम से धन का प्रवाह होता है।

वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment – FDI) 24.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है। यह निवेश मुख्यतः सेवा, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, और दूरसंचार क्षेत्रों में आकर्षित हुआ। इसके अलावा, अप्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई कुल रकम 38.4 बिलियन डॉलर रही, जो 2018-19 में कुल प्राप्तियों से 50 प्रतिशत से भी अधिक है। 

अमेरिका पारस्परिक टैरिफ क्यों लगा रहा है?

ट्रम्प का पारस्परिक टैरिफ लगाने का निर्णय उनके व्यापक व्यापार संरक्षणवादी एजेंडे के अनुरूप है। इस कदम के पीछे मुख्य कारणों में शामिल हैं:

अनुचित व्यापार प्रथाओं को समाप्त करना:ट्रम्प का तर्क है कि अमेरिका पर दशकों से अन्य देशों द्वारा उच्च टैरिफ लगाए जा रहे हैं, जिससे अमेरिकी व्यवसायों के लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया है।

व्यापार घाटे को कम करना:अमेरिका का भारत सहित कई देशों के साथ व्यापार घाटा है, और इसका उद्देश्य इन देशों से आयात को अधिक महंगा बनाकर व्यापार समीकरण को संतुलित करना है।

अन्य देशों पर टैरिफ कम करने का दबाव: टैरिफ लगाकर, अमेरिका उम्मीद करता है कि भारत और अन्य देश अमेरिकी वस्तुओं पर अपने टैरिफ को कम करने के लिए चर्चा करेंगे।    

अमेरिकी पारस्परिक टैरिफ का संभावित प्रभाव 

अमेरिकी पारस्परिक टैरिफ का प्रभाव विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगा, जैसे कि टैरिफ की दर, प्रभावित उत्पादों की श्रेणी, और भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि अमेरिका 15-20% तक के ऊँचे टैरिफ भी लगाता है, तो भारतीय निर्यात में कुल गिरावट केवल 3-3.5% तक सीमित रह सकती है। यह संकेत देता है कि भारतीय निर्यातक इस चुनौती का सामना करने में सक्षम हो सकते हैं।

प्रभावित क्षेत्र: खाद्य, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स

रेटिंग एजेंसी मूडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कुल निर्यात अमेरिका के लिए अपेक्षाकृत कम है, लेकिन कुछ विशेष क्षेत्रों जैसे खाद्य, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स पर जोखिम बना हुआ है।   इन क्षेत्रों में उच्च टैरिफ से निर्यातकों की लाभप्रदता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय वस्त्र उद्योग अमेरिकी बाजार पर काफी निर्भर है, और उच्च टैरिफ से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।  

मुद्रा विनिमय दर और पूंजी प्रवाह पर प्रभाव 

अमेरिकी टैरिफ वृद्धि से एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मुद्राओं पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे पूंजी प्रवाह में वृद्धि और अमेरिकी डॉलर की मजबूती हो सकती है। यह स्थिति क्षेत्रीय केंद्रीय बैंकों के लिए मौद्रिक नीतियों में समायोजन की गुंजाइश को सीमित कर सकती है, जिससे आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ सकता है।

1. GDP: अर्थव्यवस्था पर अधिक असर नहीं
  • गोल्डमैन सैक्स ने हाल में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ट्रंप के टैरिफ से भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर 0.1 से 0.6 के बीच असर पड़ सकता है। 
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की घरेलू गतिविधियां बढ़ने से इसका असर सीमित रहेगा। 
  • वहीं, साख निर्धारित करने वाली एजेंसी S&P ग्लोबल रेटिंग्स का कहना है कि अमेरिकी शुल्क का भारत पर कोई खास प्रभाव नहीं होगा।  
  • इसका कारण यह है कि अर्थव्यवस्था को घरेलू कारकों से गति मिल रही है, जबकि निर्यात पर निर्भरता कम है।   

2. महंगाई: कुछ वस्तुओं के दाम में उछाल संभव

  • जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रो. अरुण कुमार के मुताबिक, टैरिफ युद्ध से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ेगी।  
  • इसका असर भारत पर भी दिखेगा और निर्यात लागत बढ़ेगी। 
  • इससे न केवल निर्यात क्षेत्र प्रभावित होगा, बल्कि देश के अंदर उन वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ेंगे, जिन्हें हम निर्यात कर रहे है। 
  • इससे महंगाई में वृद्धि देखने को मिल सकता है। 
  • आर्थिक विकास दर धीमी होगी। 
  • इसका असर संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों पर देखने को मिल सकती है।  
3. शेयर बाजार: गिरावट का दौरा जारी रहने की आशंका बढ़ी
  • टैरिफ घसामान से दुनियाभर के शेयर बाजारों में अस्थिरता की आशंका और बढ़ गई है। 
  • सोमवार को अमेरिका बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। इसका असर भारतीय बाजारों पर दिखा। 
  • सेंसेक्स 73000 अंक से नीचे आ गया। 
  • वहीं निफ्टी भी 22,000 अंक के स्तर तक आ चुका है। 
  • विदेशी निवेशकों की बिकवाली और धातु कंपनियों के शेयरों में गिरावट इसका प्रमुख कारण है। 
  • विदेशी निवेशक टैरिफ युद्ध बढ़ने की आशंका से भारतीय बाजारों से लगातार अपनी रकम निकाल रहे हैं। 
  • इस साल अब तक वे 1.15 लाख करोड़ से अधिक की निकासी कर चुके हैं। 
  • विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार में गिरावट का सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। 

4. सोने की कीमतों पर प्रभाव

  • टैरिफ वॉर बढ़ने की आशंका से लोग सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की खरीदारी कर रहे हैं। 
  • इससे सोने की कीमतों में तेजी आई। 
  • भारत में सोने के दाम रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गए हैं। 
  • मंगलवार को सोने के दाम में 1100 रुपये का उछाल आया और 89,000 रुपये प्रति 10 ग्राम पहुंच गया। 
  • चांदी की कीमत भी 1500 रुपये बढ़कर 98,000 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि यदि वैश्विक अनिश्चितता बढ़ती है तो सोने की कीमतों में आगे तेज उछाल देखने को मिल सकता है। 
  • सोने की कीमतें इसलिए बढ़ रही हैं, क्योंकि लोग अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ को लेकर अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं और सोने को सुरक्षित निवेश के रूप में देख रहे हैं।   
5. रोजगार
  • विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के इस फैसले का असर अमेरिकी कंपनियों पर भी पड़ेगा। 
  • वे बड़े पैमाने पर छंटनियां शुरू कर सकती हैं। 
  • कुछ कंपनियों ने इसकी शुरुआत भी कर दी है। 
  • इसका असर उन भारतीय कंपनियों पर पड़ सकता है, जो अमेरिका से व्यापार साझा करती हैं।
  • खासकर आईटी, ऑटोमोबाइल, कपड़ा और धातु क्षेत्र में नौकरियां कम हो सकती हैं। 
  • इसके अलावा, कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से उत्पादन लागत बढ़ सकती है, जिससे उद्योगों की लाभप्रदता प्रभावित हो सकती है।   

व्यापार वार्ता और भारत की प्रतिक्रिया

1. कूटनीतिक प्रयास
  • भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल वर्तमान में टैरिफ के प्रभाव को कम करने और बातचीत करने के लिए अमेरिका में हैं।
  • नए संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) जेमीसन ग्रीर को ट्रम्प की टैरिफ योजना को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है।
  • भारत ने व्यापार सौदे की प्रत्याशा में पहले ही बोरबॉन व्हिस्की जैसे उत्पादों पर टैरिफ कम कर दिया था।
2. कम टैरिफ के लिए ऐतिहासिक अमेरिकी प्रयास
  • अमेरिका 2001 में WTO दोहा दौर के बाद से कम टैरिफ की वकालत कर रहा है, लेकिन वार्ता काफी हद तक रुकी हुई है।
  • व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प की आक्रामक टैरिफ धमकियाँ भारत को टैरिफ, सरकारी खरीद और बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) पर रियायतें देने के लिए मजबूर कर सकती हैं।     

वैश्विक व्यापार प्रभाव

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से भारत को पहले भी फ़ायदा हुआ है: 

  • अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने भारत के अमेरिका को निर्यात को बढ़ावा देने में मदद की थी, खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो पार्ट्स में।
  • हालाँकि, पारस्परिक टैरिफ़ इन लाभों को उलट सकते हैं।
विश्व व्यापार संगठन और मुक्त व्यापार की चिंताएँ:
  • अमेरिका का 2025 व्यापार नीति एजेंडा विश्व व्यापार संगठन की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है।
  • अमेरिका ने भारत जैसे विकासशील देशों की भी आलोचना की है, जो विश्व व्यापार संगठन के विशेष और विभेदक उपचार (SDT) प्रावधानों के तहत विशेष उपचार की मांग कर रहे हैं।  
भारत के लिए क्या आगे की राह  

1.टैरिफ संरचना का पुनर्मूल्यांकन:

  • भारत को अपनी वर्तमान टैरिफ नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए ताकि वे वैश्विक मानकों के अनुरूप हों। 
  • उदाहरण के लिए, 2019 में भारत की औसत टैरिफ दर 6.59% थी, जो 2018 की तुलना में 1.71% अधिक है। 
  • उच्च टैरिफ दरें विदेशी निवेशकों के लिए अवरोधक बन सकती हैं और व्यापारिक साझेदारों के साथ तनाव उत्पन्न कर सकती हैं। 
  • टैरिफ दरों को वैश्विक औसत के करीब लाने से भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।      

2.मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) का विस्तार:

  • भारत को विभिन्न देशों और व्यापारिक समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का विस्तार करना चाहिए। 
  • उदाहरण के लिए, भारत ने ऑस्ट्रेलिया (ECTA) और संयुक्त अरब अमीरात (CEPA) के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे व्यापार की मात्रा में वृद्धि हो रही है। 
  • FTAs से टैरिफ बाधाएँ कम होती हैं, जिससे भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार उपलब्ध होते हैं और निर्यात में वृद्धि होती है। 

3.निर्यात विविधीकरण:

  • भारत को अपने निर्यात उत्पादों और बाजारों में विविधता लानी चाहिए।  
  • वर्तमान में, भारत का निर्यात कुछ प्रमुख क्षेत्रों, जैसे आईटी सेवाएँ, पेट्रोलियम उत्पाद, और रत्न एवं आभूषण तक सीमित है। 
  • नए बाजारों की खोज और विभिन्न उत्पाद श्रेणियों में निर्यात बढ़ाने से किसी एक देश या उत्पाद पर निर्भरता कम होगी, जिससे पारस्परिक टैरिफ का प्रभाव सीमित होगा।  
4. घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि:
  • सरकार को घरेलू उद्योगों की उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता, और नवाचार को बढ़ावा देना चाहिए। 
  • उदाहरण के लिए, उत्पादन-संबंधित प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत स्मार्टफोन निर्माण में तीव्र वृद्धि हुई है, जिससे वित्त वर्ष 2023 में भारत का स्मार्टफोन निर्यात बढ़कर 90,000 करोड़ हो गया। 
  • इससे घरेलू उत्पाद वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक रहेंगे, भले ही टैरिफ बढ़े हों।  

5. रणनीतिक कूटनीति:

  • भारत को अमेरिका और अन्य प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ कूटनीतिक वार्ता के माध्यम से टैरिफ मुद्दों का समाधान करना चाहिए।
  • व्यापारिक तनाव कम करने और सहयोग के नए रास्ते खोलने के लिए उच्च स्तरीय वार्ताएँ आवश्यक हैं। 
  • उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ के साथ चल रही मुक्त व्यापार वार्ताएँ भारत के लिए नए अवसर प्रदान कर सकती हैं।  
6. नॉन-टैरिफ बाधाओं का उपयोग:
  • भारत नॉन-टैरिफ बाधाओं, जैसे गुणवत्ता मानकों, तकनीकी विनियमों, और सुरक्षा मानकों का उपयोग करके अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा कर सकता है। 
  • उदाहरण के लिए, विकसित देशों द्वारा लगाए गए कार्बन टैरिफ और कड़े पर्यावरण मानकों के प्रभाव को कम करने के लिए, भारत को अपने उत्पादों के पर्यावरणीय मानकों में सुधार करना चाहिए।  
  • इससे विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम होगी और घरेलू उद्योग मजबूत होंगे।
7. निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ:
  • सरकार को निर्यातकों के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ लागू करनी चाहिए, जैसे कर रियायतें, सब्सिडी, और वित्तीय सहायता, जिससे वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकें। 
  • उदाहरण के लिए, उत्पादन-संबंधित प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत स्मार्टफोन निर्माण में तीव्र वृद्धि हुई है, जिससे वित्त वर्ष 2023 में भारत का स्मार्टफोन निर्यात बढ़कर 90,000 करोड़ हो गया। 
  • इससे निर्यातकों को प्रोत्साहन मिलेगा और निर्यात में वृद्धि होगी। 
8. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकरण:
  • भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए। 
  • उदाहरण के लिए, एप्पल और उसके आपूर्तिकर्त्ताओं का लक्ष्य सत्र 2026-27 तक वैश्विक iPhone विनिर्माण में 32% और भारत में अपने उत्पादन मूल्य का 26% हिस्सा हासिल करना है। 
  • इससे भारतीय उद्योग वैश्विक मांग के अनुसार अपने उत्पादों को समायोजित कर सकेंगे और टैरिफ के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। 

image 

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है/हैं?

  1. पारस्परिक टैरिफ का उद्देश्य व्यापार में संतुलन स्थापित करना और घरेलू उद्योगों की रक्षा करना है।
  2. अमेरिका ने हाल ही में भारत सहित कई देशों पर पारस्परिक टैरिफ लागू किए हैं।
  3. पारस्परिक टैरिफ लगाने से दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा बढ़ता है।

विकल्प:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

 

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

Tag Cloud

6 जुलाई का इतिहास 7 जून का इतिहास 9 जून का इतिहास Ayushman Bharat Digital Mission (ABDM) Benefits of Organic Farming CAG CAG के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान Challenges Facing the Health Sector CHINA MOON MISSION CITES Current status of organic farming in India Government Initiatives Related to Healthcare Government initiatives to promote organic farming Government Spending on Healthcare H5N2 H5N2 बर्ड फ्लू H5N2 बर्ड फ्लू का संक्रमण H5N2 बर्ड फ्लू क्या है? Health in the Indian Constitution Health infrastructure in India Healthcare Sector in India importance of organic farming INDIA MOON MISSION ISRO IUCN Living Planet Index - LPI Living Planet Report MOON MISSION NASA MISSION National Biodiversity Authority National Green Tribunal NGT organic farming organic farming in India State Biodiversity Boards (SBBs) Today History Traffic UNEP और भारत World Health Day World Health Day 2024 World Health Day 2024 theme World Wide Fund for Nature WWF अनुच्छेद 15 अनुच्छेद 16: समानता का अधिकार अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अभय मुद्रा अभय मुद्रा क्या है? आज का इतिहास ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) ओमिक्स के प्रकार चाइल्ड केयर लीव चुनाव आयोग चुनाव आयोग की शक्तियाँ और कार्य चुनाव आयोग की संरचना एवं कार्यकाल चुनाव आयोग से संबंधित अनुच्छेद जाति-विरोधी आंदोलन और बौद्ध धर्म का विनियोग जैविक खेती का उद्देश्य जैविक खेती के महत्व जैविक खेती के लाभ जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल ट्रैफिक का महत्व ट्रैफिक का मिशन धर्मचक्र मुद्रा धीरूभाई अंबानी नकद आरक्षित अनुपात (CRR) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बैंक दर बौद्ध धर्म और भारतीय समाज पर इसका प्रभाव बौद्ध धर्म में मुद्राएँ भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के क्षेत्र भारत के लिए यूरोप का महत्व भारत में जैविक खेती भारत में बौद्ध धर्म का उद्भव और प्रसार भारत में महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा की गई पहल भारतीय रिज़र्व बैंक और उसके मौद्रिक नीति उपकरण भारतीय संविधान के तहत कार्यरत माताओं के संविधानिक अधिकार मनुष्यों में H5N2 के लक्षण मल्टी-ओमिक्स मल्टी-ओमिक्स के अनुप्रयोग मल्टी-ओमिक्स में चुनौतियां :- मिनामाता सम्मेलन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल मोटे अनाज मोटे अनाज का महत्व मोटे अनाज की खेती और खपत बढ़ाने में बाधाएँ मौद्रिक नीति मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण मौद्रिक नीति के मात्रात्मक उपकरण यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति यूरोपीय संघ यूरोपीय संघ का इतिहास यूरोपीय संघ के सदस्य देश यूरोपीय संघ में चुनाव यूरोपीय संसद यूरोपीय संसद की संरचना और चुनाव राज्य जैव विविधता बोर्ड्स (SBBs) राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की संरचना राष्ट्रीय मोटा अनाज मिशन (NMM): राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) रिवर्स रेपो रेट रेपो दर लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम विश्व जुनोसिस डे वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) संज्ञान ऐप संज्ञान ऐप की मुख्य विशेषताएँ संज्ञान ऐप क्या है संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) संवैधानिक अधिकार सहकारिता दिवस स्टॉकहोम सम्मेलन
Newsletter

Nirman IAS is India's Premier institution established with the sole aim to initiate, enable and empower individuals to grow up to be extraordinary professionals.

© All Rights Reserved by Nirman IAS