पंजाब-हरियाणा भाखड़ा जल विवाद |
चर्चा में क्यों :
- पंजाब ने हरियाणा की भाखड़ा डैम से जल माँग ठुकराई, कहा कोटा पहले ही 103% उपयोग हो चुका है। हरियाणा ने चेताया, अतिरिक्त पानी पाकिस्तान जा सकता है।
UPSC पाठ्यक्रम:
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भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) क्या है?
- भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है जिसे भाखड़ा और ब्यास नदी परियोजनाओं के प्रबंधन और साझेदार राज्यों को जल एवं विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए गठित किया गया था।
- इसका गठन 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम की धारा 79 के तहत हुआ था।
BBMB के अंतर्गत शामिल राज्य:
- इसका कार्यक्षेत्र 6 राज्यों/केंद्र शासित क्षेत्रों में फैला है:
- पंजाब
- हरियाणा
- राजस्थान
- हिमाचल प्रदेश
- दिल्ली
- चंडीगढ़
- इन राज्यों को भाखड़ा और ब्यास परियोजनाओं से जल और विद्युत प्रदान करना BBMB की जिम्मेदारी है।
BBMB की संरचना
- BBMB का नेतृत्व एक अध्यक्ष (Chairman) करते हैं।
- इसके अलावा इसमें दो पूर्णकालिक सदस्य (Whole-time Members) होते हैं:
- एक सदस्य पंजाब से
- एक सदस्य हरियाणा से
BBMB का गठन क्यों हुआ?
पृष्ठभूमि:
- 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच “सिंधु जल संधि” पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें रावी, ब्यास और सतलुज नदियों को भारत के पूर्ण उपयोग हेतु निर्धारित किया गया।
- इसके बाद भारत सरकार ने इन नदियों के जल संसाधनों के प्रभावी उपयोग के लिए भाखड़ा और ब्यास परियोजनाओं की योजना बनाई।
पुनर्गठन के बाद:
- 1 नवंबर 1966 को पंजाब राज्य का पुनर्गठन हुआ और हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया।
- 1 अक्टूबर 1967 को भाखड़ा नांगल परियोजना (Bhakra-Nangal Project) का संचालन, प्रशासन और रखरखाव औपचारिक रूप से भाखड़ा प्रबंधन बोर्ड को सौंपा गया।
- 15 मई 1976 को जब ब्यास परियोजना पूरी हुई, तब इस बोर्ड का नाम बदलकर भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) कर दिया गया।
ब्यास परियोजना (Beas Project) क्या है?
- भारत सरकार की एक प्रमुख बहुउद्देशीय जल परियोजना है, जिसे सिंचाई, पेयजल आपूर्ति, जल विद्युत उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण जैसे उद्देश्यों की पूर्ति हेतु विकसित किया गया है।
इस परियोजना के अंतर्गत मुख्य रूप से दो प्रमुख बांध शामिल हैं:
- पोंग बांध: यह हिमाचल प्रदेश में ब्यास नदी पर स्थित है और इसका उपयोग जल संचयन तथा विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
- पंडोह बांध: यह बांध ब्यास नदी के जल को सतलुज नदी की ओर मोड़ने का कार्य करता है, जिससे सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन में सहायता मिलती है।
- यह परियोजना वर्ष 1976 में पूर्ण हुई थी, जिसके बाद इसे भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) को सौंप दिया गया। BBMB तब से इस परियोजना के संचालन और प्रबंधन की जिम्मेदारी संभाल रहा है।
- इस परियोजना से जुड़े विद्युत संयंत्रों से प्रतिवर्ष लगभग 1000 मेगावाट (MW) बिजली का उत्पादन होता है।
पंजाब-हरियाणा जल विवाद: अप्रैल 2025 की स्थिति
विवाद का कारण:
- BBMB हर वर्ष 21 मई से शुरू होने वाले चक्र के लिए पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को वार्षिक जल कोटा आवंटित करता है।
- हरियाणा को 2024-25 के लिए 2.987 मिलियन एकड़ फीट (MAF) जल आवंटित किया गया था।
- पंजाब को 5.512 MAF जल मिला।
पंजाब की स्थिति:
- अप्रैल 2025 तक हरियाणा ने अपने कोटे का 103% उपयोग कर लिया था।
- जबकि पंजाब ने केवल 89% जल का उपयोग किया था।
- पंजाब ने हरियाणा को अप्रैल में “मानवीय आधार” पर 4,000 क्यूसेक जल देना स्वीकार किया, लेकिन 8,500 क्यूसेक देने से इंकार कर दिया।
हरियाणा की मांग:
- 23 अप्रैल 2025 को BBMB की तकनीकी समिति ने हरियाणा के लिए 8,500 क्यूसेक जल छोड़ने की सिफारिश की थी।
- हरियाणा का कहना है कि गर्मी के मौसम में यमुना नदी में बहाव कम होने के कारण पेयजल संकट उत्पन्न हो रहा है।
- यदि अभी जल नहीं छोड़ा गया, तो वर्षा ऋतु में जबरन बड़े पैमाने पर पानी छोड़ना पड़ेगा जिससे वह जल पाकिस्तान में बह जाएगा जबकि भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है।
पंजाब की दलील क्या है?
- हरियाणा ने अपने कोटे से अधिक जल पहले ही उपयोग कर लिया है।
- पंजाब को खुद आगामी धान बुआई के लिए जल की आवश्यकता है।
- reservoirs (Govind Sagar और Pong) में जल स्तर पिछले वर्षों की तुलना में कम है।
- मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा: “हमारे पास एक अतिरिक्त बूंद भी नहीं है।”
- उन्होंने BBMB तकनीकी समिति की सिफारिश को लागू करने से इंकार कर दिया।
हरियाणा की दलील क्या है?
- मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि अप्रैल में 9500 क्यूसेक जल पहले भी मिलता रहा है।
- पेयजल संकट पैदा हो रहा है विशेषकर हिसार, सिरसा, फतेहाबाद में।
- यदि अभी जल नहीं मिला, तो मानसून में बिना आवश्यकता के बड़े स्तर पर जल छोड़ना पड़ेगा, जो अंततः पाकिस्तान की ओर प्रवाहित होगा।
- उन्होंने कहा कि 8,500 क्यूसेक की मांग भाखड़ा डैम की कुल क्षमता का 0.0001% है जो नगण्य है।
भारत में प्रमुख अंतर-राज्यीय जल विवाद
- भारत में कई ऐसी नदियाँ हैं जो एक से अधिक राज्यों से होकर बहती हैं। इन नदियों के जल के बंटवारे को लेकर अनेक बार राज्यों के बीच विवाद उत्पन्न हुए हैं। नीचे प्रमुख जल विवादों का विवरण दिया गया है:
1. कावेरी जल विवाद (कर्नाटक बनाम तमिलनाडु)
क्या है विवाद?
- कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच दशकों से विवाद चला आ रहा है। इसमें केरल और पुडुचेरी भी पक्षकार हैं।
कब से विवाद चल रहा है?
- यह विवाद ब्रिटिश कालीन समझौतों (1892 और 1924) से शुरू हुआ और स्वतंत्रता के बाद और अधिक तीव्र हो गया।
वर्तमान स्थिति (2025 तक):
- सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अंतिम फैसला सुनाया, लेकिन सूखा पड़ने पर दोनों राज्य अब भी एक-दूसरे पर समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं। अब कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) इसके वितरण की निगरानी करता है।
उपलब्धियाँ:
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु का हिस्सा कुछ कम और कर्नाटक का कुछ बढ़ाया।
- CWMA का गठन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार हुआ।
2. कृष्णा और गोदावरी जल विवाद
क्या है विवाद?
- यह विवाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा के बीच कृष्णा और गोदावरी नदियों के जल के बंटवारे को लेकर है।
- कब से चला आ रहा है?
- कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (KWDT) 1969 में और गोदावरी न्यायाधिकरण 1969 में ही गठित हुए थे।
वर्तमान स्थिति:
- 2014 में तेलंगाना राज्य बनने के बाद नए जल बंटवारे की माँग की गई है। नए सिंचाई परियोजनाओं को लेकर विवाद समय-समय पर फिर उभरते हैं।
उपलब्धियाँ:
- KWDT-I और KWDT-II ने जल आवंटन किया।
- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुए समझौतों से हिंसक संघर्ष टले हैं।
3. नर्मदा जल विवाद
क्या है विवाद?
- मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के बीच नर्मदा नदी और उसकी परियोजनाओं का जल बंटवारा विवाद का विषय रहा है।
- कब से चला आ रहा है?
- नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण (NWDT) 1969 में गठित हुआ और 1980 में इसका निर्णय आया।
वर्तमान स्थिति:
- अधिकांश विवाद निपट चुके हैं और सरदार सरोवर परियोजना लगभग पूरी हो चुकी है। पुनर्वास और विस्थापन के मुद्दे अब भी संवेदनशील हैं।
उपलब्धियाँ:
- जल बंटवारा न्यायाधिकरण के माध्यम से सफलतापूर्वक तय किया गया।
- नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण प्रभावी रूप से कार्य कर रहा है।
4. मुल्लपेरियार बांध विवाद (केरल बनाम तमिलनाडु)
क्या है विवाद?
- 125 वर्ष पुराना मुल्लपेरियार बांध केरल में स्थित है, लेकिन उसका संचालन तमिलनाडु द्वारा किया जाता है। इस पर सुरक्षा और जल स्तर को लेकर विवाद है।
- कब से चला आ रहा है?
- यह विवाद 1886 में मद्रास प्रेसिडेंसी और त्रावणकोर रियासत के बीच हुए समझौते पर आधारित है।
वर्तमान स्थिति:
- केरल इस बांध को भूकंपीय क्षेत्र में असुरक्षित मानता है और इसे हटाने की माँग करता है, जबकि तमिलनाडु इसका जल स्तर 142 फीट तक बनाए रखना चाहता है। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
उपलब्धियाँ:
- सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी रूप से जल स्तर 142 फीट तक रखने की अनुमति दी और निगरानी समिति नियुक्त की।
5. सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद (पंजाब बनाम हरियाणा)
क्या है विवाद?
- यह विवाद रावी-ब्यास नदियों के जल बंटवारे और SYL नहर निर्माण को लेकर है, जो पंजाब से हरियाणा तक यमुना जल पहुंचाने हेतु प्रस्तावित थी।
कब से चला आ रहा है?
- विवाद की शुरुआत 1981 के जल समझौते से हुई। हरियाणा ने अपनी ओर से नहर बना ली, लेकिन पंजाब ने निर्माण रोक दिया और 2004 में समझौता रद्द कर दिया।
वर्तमान स्थिति (2025):
- सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को नहर निर्माण पूरा करने का आदेश दिया, लेकिन पंजाब जल संकट और राजनीतिक विरोध के आधार पर निर्माण से इनकार कर रहा है।
उपलब्धियाँ:
- अब तक कोई निर्णायक समाधान नहीं निकला है। यह विवाद आज भी राजनीतिक रूप से सबसे संवेदनशील जल विवादों में से एक है।
भारत में अंतर-राज्यीय जल विवादों के लिए संवैधानिक प्रावधान
सातवीं अनुसूची के अनुच्छेद:
- राज्य सूची (Entry 17): राज्यों को अपने क्षेत्र के जल संसाधनों (नहर, सिंचाई, जल विद्युत, आदि) का नियंत्रण।
- संघ सूची (Entry 56): संसद को अधिकार है कि वह दो या दो से अधिक राज्यों से संबंधित नदी या नदी घाटी के उपयोग, विकास और नियंत्रण हेतु कानून बनाए।
संविधान का अनुच्छेद 262:
- अनुच्छेद 262(1): “संसद को यह अधिकार है कि वह किसी भी अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण से संबंधित विवादों के न्यायनिर्णयन के लिए कानून बना सके।”
- अनुच्छेद 262(2): “संसद यह भी प्रावधान कर सकती है कि ऐसे विवादों में सुप्रीम कोर्ट या किसी अन्य अदालत को अधिकार क्षेत्र प्राप्त नहीं होगा।”
संसद द्वारा लागू प्रमुख कानून
1. अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956
- अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 भारतीय संसद द्वारा पारित एक प्रमुख कानून है, जो नदी जल के बंटवारे को लेकर दो या दो से अधिक राज्यों के बीच विवादों को हल करने के लिए एक कानूनी तंत्र प्रदान करता है।
- यह अधिनियम 1956 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 द्वारा प्रदत्त अधिकार के तहत पारित किया गया था।
- उद्देश्य: अंतर-राज्यीय नदी जल बंटवारे से संबंधित विवादों के निपटारे के लिए एक समर्पित और संरचित तंत्र प्रदान करना।
मुख्य प्रावधान:
- यदि किसी राज्य सरकार को लगता है कि नदी के पानी पर उसके अधिकारों का किसी अन्य राज्य द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है, तो वह केंद्र सरकार को शिकायत प्रस्तुत कर सकती है।
- केंद्र सरकार, उचित जांच के बाद, जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
- एक बार न्यायाधिकरण गठित हो जाने के बाद, न्यायालयों (सर्वोच्च न्यायालय सहित) का उस मामले पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं रह जाता है।
- न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होता है और संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होता है।
- हाल ही में संशोधन (2019 मसौदा विधेयक): कई न्यायाधिकरणों को स्थायी न्यायाधिकरण से बदलने के लिए, लेकिन 2025 तक, यह अभी भी विचाराधीन है।
वर्तमान स्थिति (2025):
- इस अधिनियम के तहत कई न्यायाधिकरण बनाए गए हैं:
- कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण
- कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण
- नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण
- वनसाधारा और महादयी विवाद न्यायाधिकरण
- न्यायाधिकरण के निर्णय, हालांकि बाध्यकारी हैं, अक्सर प्रवर्तन और राजनीतिक प्रतिरोध में समस्याओं का सामना करते हैं।
उपलब्धियां:
- अंतर-राज्यीय जल विवादों को कैसे संभालना है, इस पर कानूनी और संवैधानिक स्पष्टता बनाई।
- संस्थागत साधनों के माध्यम से हिंसक संघर्षों से बचने में मदद की।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) जैसे विनियामक प्राधिकरणों के गठन का नेतृत्व किया।
2. नदी बोर्ड अधिनियम, 1956
- नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 को केंद्र सरकार को अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के विनियमन और विकास के लिए नदी बोर्ड बनाने के लिए सशक्त बनाने के लिए अधिनियमित किया गया था।
- इसे अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम – 1956 के समान वर्ष में पारित किया गया था।
- उद्देश्य: प्रभावित राज्यों के परामर्श से नदी बोर्ड बनाकर अंतर-राज्यीय नदी प्रणालियों के समन्वित विकास और प्रबंधन को सुनिश्चित करना।
मुख्य प्रावधान:
- केंद्र सरकार संबंधित राज्यों के परामर्श से किसी भी अंतर-राज्यीय नदी के लिए नदी बोर्ड की स्थापना कर सकती है।
- बोर्ड सिंचाई, जल विद्युत, बाढ़ नियंत्रण और प्रदूषण निवारण जैसी विकास परियोजनाओं को सलाह और निगरानी दे सकता है।
वर्तमान स्थिति (2025):
- 1956 से लागू होने के बावजूद, आज तक इस अधिनियम के तहत एक भी नदी बोर्ड का गठन नहीं किया गया है।
- जल प्रबंधन राज्य-केंद्रित बना हुआ है, जिसमें केंद्रीय समन्वय बहुत कम है।
- नीति आयोग और केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) नदी नियोजन में कुछ भूमिकाएँ निभाते हैं, लेकिन इस अधिनियम के तहत नहीं।
चुनौतियाँ:
- राज्यों और केंद्र के बीच राजनीतिक सहमति का अभाव।
- राज्यों में नदी जल नियंत्रण पर स्वायत्तता खोने का डर।
- सीडब्ल्यूसी, जल शक्ति मंत्रालय आदि जैसी अन्य एजेंसियों द्वारा पहले से किए गए कार्यों का दोहराव।
उपलब्धियाँ:
- हालांकि अधिनियम को लागू नहीं किया गया है, लेकिन यह नदी जल प्रबंधन में सहकारी संघवाद की मंशा को दर्शाता है।
- अगर भविष्य में नदी बोर्ड स्थापित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति बनाई जाती है, तो ढांचा उपलब्ध रहेगा।
अंतर-राज्यीय जल विवादों को सुलझाने में प्रमुख चुनौतियाँ
1. तकनीकी चुनौती
- भारत में अधिकांश जल वितरण अनुमानित आँकड़ों या पुराने रिकॉर्ड्स के आधार पर होता है। पंजाब और हरियाणा के बीच जल के वास्तविक प्रवाह की निगरानी और आकलन के लिए कोई सटीक, वैज्ञानिक और अद्यतन प्रणाली नहीं है।
- उदाहरण: पंजाब कहता है कि हरियाणा ने अपने कोटे का 103% जल पहले ही उपयोग कर लिया है, जबकि हरियाणा का कहना है कि उसे पूरा कोटा नहीं मिला। यह भ्रम केवल सही डेटा के अभाव में पैदा होता है।
2. कानूनी चुनौती (Legal Challenge)
- भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) केवल तकनीकी और प्रशासनिक अनुशंसा करता है, लेकिन उसके पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है जिससे वह राज्यों पर अपने आदेश लागू कर सके।
- उदाहरण: कृष्णा जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन हुआ लेकिन उसका निर्णय लागू होने में दशकों लग गए, जिससे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच नया विवाद उत्पन्न हो गया।
3. राजनीतिक चुनौती (Political Challenge)
- जल वितरण का मुद्दा जब राजनीतिक रंग ले लेता है, तब केंद्र और राज्यों के बीच संवाद की प्रक्रिया बाधित हो जाती है। अलग-अलग राजनीतिक दलों के शासन में सहयोग की बजाय टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: 2025 में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से इनकार किया, जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आरोप लगाया कि यह निर्णय राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है।
4. पर्यावरणीय चुनौती (Environmental Challenge)
- अनियमित वर्षा, बेमौसम बारिश और लंबे सूखे जैसी घटनाएँ बढ़ गई हैं। इससे नदी जल में अनिश्चितता आती है और पूर्व निर्धारित जल आवंटन वास्तविकता में असंगत हो जाता है।
- उदाहरण: पंजाब ने यह कहते हुए जल देने से मना कर दिया कि धान की बुवाई का मौसम शुरू हो रहा है और रंजीत सागर व पोंग डैम के जल स्तर में कमी आई है।
आगे की राह
- केंद्र सरकार को पंजाब और हरियाणा के बीच संवाद स्थापित कराना चाहिए, और यदि समाधान न निकले तो अनुच्छेद 262 के तहत ट्रिब्यूनल गठित करना चाहिए।
- BBMB को कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्देश देने की शक्ति और उन्नत तकनीकी उपकरणों से सुसज्जित किया जाना चाहिए।
- पंजाब को जल-गहन फसलों से हटकर वैकल्पिक फसलों की ओर बढ़ाना चाहिए और दोनों राज्यों में जल बजट प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
- अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन कर ट्रिब्यूनल के निर्णयों को समयबद्ध और बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए।
- एक स्थायी अंतर-राज्यीय जल ट्रिब्यूनल का गठन किया जाना चाहिए जिसमें न्यायिक के साथ-साथ जल प्रबंधन विशेषज्ञ भी शामिल हों।
Q . भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
- इसका गठन सिंधु जल संधि, 1960 के अंतर्गत किया गया था।
- यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को जल एवं विद्युत आपूर्ति करता है।
- BBMB एक वैधानिक निकाय है जिसे पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत गठित किया गया था।
- इसमें केवल केंद्र सरकार के अधिकारी ही सदस्य होते हैं।
उपयुक्त विकल्प चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1, 3 और 4
d) केवल 2, 3 और 4
उत्तर: b) केवल 2 और 3
स्पष्टीकरण:
- BBMB सिंधु जल संधि का प्रत्यक्ष अंग नहीं है बल्कि इसका गठन पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 79 के तहत हुआ था। इसमें पंजाब और हरियाणा से पूर्णकालिक सदस्य होते हैं, न कि केवल केंद्र से।