चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना POCSO अधिनियम के तहत अपराध: सुप्रीम कोर्ट |
चर्चा में क्यों :
- सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
- कोर्ट ने कहा कि बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) को देखना और डाउनलोड करना POCSO अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है।
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चाइल्ड पोर्नोग्राफी क्या है ?
- चाइल्ड पोर्नोग्राफी ऐसी सामग्री है जिसमें बच्चों का यौन शोषण या दुर्व्यवहार दर्शाया जाता है।
- यह सामग्री किसी भी रूप में हो सकती है, जैसे कि तस्वीरें, वीडियो, ऑडियो या डिजिटल सामग्री, और इसका निर्माण, वितरण, या उपभोग एक गंभीर अपराध है।
मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला
- मामला एक 28 वर्षीय व्यक्ति से संबंधित था, जिसे चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने और देखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी 2024 को पॉक्सो एक्ट के एक आरोपी के खिलाफ केस को रद्द कर दिया था।
- मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि अपनी डिवाइस पर ऐसा कंटेंट देखना या डाउनलोड करना अपराध के दायरे में नहीं आता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गंभीर त्रुटि बताते हुए इसे पलट दिया और आपराधिक मुकदमे को बहाल किया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु
चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना अपराध
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि POCSO Act की धारा 15(1) के तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, उसे स्टोर करना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना एक अपराध है।
- यह कानून बच्चों से जुड़े अश्लील कंटेंट के खिलाफ सख्त कार्रवाई की व्यवस्था करता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि POCSO Act की धारा 15(3) के अनुसार, यदि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का भंडारण किसी कारोबारी उद्देश्य या लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया है, तो यह भी अपराध के दायरे में आता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना आईटी अधिनियम की धारा 67-B के तहत दंडनीय हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और सिफारिशें
‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी‘ की परिभाषा में बदलाव
- जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा की चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह ‘चाइल्ड सेक्शुअल एक्सप्लॉएटेटिव एंड एब्यूसिव मटेरियल’ (CSEAM) शब्द का इस्तेमाल किया जाए।
- केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर बदलाव करे।
- अदालतें भी इस शब्द का इस्तेमाल न करें।
सेक्स एजुकेशन पर जोर
- सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया कि वह एक एक्सपर्ट कमेटी बनाए जो सेक्स एजुकेशन का एक व्यापक ढांचा तैयार करे ।
- इस शिक्षा में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।
विधायी संशोधन का आह्वान
- न्यायालय ने संसद से आग्रह किया कि इस संदर्भ में तत्काल प्रभाव से संशोधन लाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया जाए ताकि इस अपराध के खिलाफ कठोर कानून लागू किए जा सकें।
ऐतिहासिक निर्णय
- मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया।
- यह निर्णय वैश्विक स्तर पर बाल यौन शोषण सामग्री पर पहली बार न्यायपालिका द्वारा इतनी विस्तृत रूप से चर्चा करने के रूप में देखा जा रहा है।
‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी‘ से संबंधित मामले
केरल हाईकोर्ट का फैसला (13 सितंबर 2023)
- केरल हाईकोर्ट ने यह कहा था कि अगर कोई व्यक्ति सिर्फ अश्लील तस्वीरें या वीडियो देख रहा है, तो यह अपराध नहीं होगा, लेकिन अगर वह इसे दूसरों को दिखाता है या वितरित करता है, तो यह अवैध होगा।
- यह फैसला इस आधार पर दिया गया कि देखने की क्रिया व्यक्तिगत है और इसका कानूनी दायरे में अपराध के रूप में नहीं गिना जा सकता।
- केरल हाईकोर्ट ने इस फैसले के पीछे मुख्य तर्क यह था कि देखने की क्रिया एक निजी कार्य है और इसे अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार से जोड़ा गया है।
- इसे एक अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता, जब तक कि इसे दूसरों के साथ साझा न किया जाए या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित न किया जाए।
- 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ) के अनुसार, निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है।
- इसका अर्थ यह है कि एक व्यक्ति का निजी जीवन, जिसमें उनकी देखी जाने वाली सामग्री भी शामिल हो सकती है, सरकारी हस्तक्षेप से सुरक्षित है, जब तक कि वह किसी अन्य कानूनी बाधा का उल्लंघन नहीं करता।
मद्रास हाईकोर्ट का फैसला (11 जनवरी 2024)
- साल 2019 में चाइल्ड पोर्न डाउनलोड करने के आरोप में 28 साल के युवक पर POCSO और IT कानून के तहत केस दर्ज हुआ था.
- मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने इस केस को ये कहते हुए रद्द कर दिया था कि चाइल्ड पोर्न देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध नहीं है.
- मद्रास हाईकोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाकर एक व्यक्ति को दोषमुक्त किया, जिसने चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड और देखा था, लेकिन इसे किसी और को दिखाने या प्रसारित करने का आरोप नहीं था।
NGO द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
- मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद, दो NGO – जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और नई दिल्ली के NGO बचपन बचाओ आंदोलन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
- इन संगठनों ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के इस फैसले से चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि इससे ऐसा संकेत मिलेगा कि इस तरह का कंटेंट डाउनलोड या संग्रह करना अपराध नहीं माना जाएगा।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर कानून
POCSO अधिनियम, 2012 क्या है ?
- 14 नवंबर, 2012 को लागू किया गया यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों को हमले, दुर्व्यवहार, उत्पीड़न, उत्पादन और प्रसार सहित यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया एक व्यापक विधायी उपाय है।
- इसे वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
उद्देश्य :
- इसका उद्देश्य उन अंतरालों को भरना था जहां मौजूदा कानून अपर्याप्त रूप से बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की गंभीर प्रकृति को संबोधित करते थे।
POCSO अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
लिंग-निष्पक्ष प्रकृति:-
●POCSO अधिनियम लिंग की परवाह किए बिना 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों पर समान रूप से लागू होता है।
दुर्व्यवहार की अनिवार्य रिपोर्टिंग:-
●कोई अगर किसी बच्चे के खिलाफ यौन अपराध के बारे में जानता है उसे पुलिस या विशेष किशोर पुलिस इकाई को इसकी सूचना देनी चाहिए।
●रिपोर्ट न करने पर कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
रिपोर्टिंग के लिए कोई सीमा क़ानून नहीं:-
●अधिनियम पीड़ितों या गवाहों को किसी भी समय दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने की अनुमति देता है, भले ही दुर्व्यवहार कितने समय पहले ही क्यो न हुआ हो।
पीड़ित की पहचान की गोपनीयता:-
●धारा 23 मीडिया को पीड़ित की पहचान उजागर करने से सख्ती से रोकती है, जब तक कि विशेष अदालत द्वारा अनुमति न दी जाए।
POCSO नियम 2020
● POCSO नियम 2020 यौन अपराध मामले में शामिल बच्चों के कल्याण और समर्थन के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान पेश करता है:
अंतरिम मुआवजा :-
● नियम 9 विशेष अदालत को FIR दर्ज होने के बाद पीड़ित बच्चे की राहत या पुनर्वास की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए अंतरिम मुआवजा देने में सक्षम बनाता है।
● यह अंतरिम मुआवजा बाद में भुगतान किए गए किसी भी अंतिम मुआवज़े से काट लिया जाता है।
तत्काल विशेष राहत :-
● बाल कल्याण समिति (CWC) भोजन, कपड़े और परिवहन जैसी आवश्यक वस्तुओं के तत्काल प्रावधान की सिफारिश कर सकती है।
● इन्हें जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA), जिला बाल संरक्षण इकाई (DCPU), या किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत उपलब्ध फंड के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
● ऐसे भुगतान सिफारिश के एक सप्ताह के भीतर किए जाने हैं।
सहायक व्यक्ति की नियुक्ति :-
● नियम CWC को जांच और परीक्षण दोनों चरणों के दौरान बच्चे की सहायता के लिए एक सहायक व्यक्ति नियुक्त करने के लिए अधिकृत करते हैं।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित धारा और सजा
POCSO Act की धारा 14:
- अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे को अश्लील कंटेंट के लिए इस्तेमाल करता है, तो उसे 7 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
POCSO Act की धारा 15:
- अगर कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी का भंडारण करता है, उसे किसी और को भेजता है, या इसका कमर्शियल उपयोग करता है, तो उसे 3 से 7 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
आईटी अधिनियम, 2000
- इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 67, 67A, 67B के तहत जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है
धारा 67:
- पहली बार पोर्नोग्राफ़िक सामग्री देखने, डाउनलोड करने या प्रसारित करने पर 3 साल की कैद और ₹5 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार पकड़े जाने पर सज़ा बढ़कर 5 साल की कैद और ₹10 लाख का जुर्माना हो सकता है।
धारा 67A:
- पहली बार पोर्नोग्राफ़िक सामग्री रखने या प्रसारित करने पर सज़ा 5 साल की कैद और ₹10 लाख का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार अपराध करने पर सज़ा 7 साल की कैद और ₹10 लाख का जुर्माना हो सकता है।
धारा 67 B (चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी):
- अगर किसी के पास चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी सामग्री पाई जाती है, तो पहली बार अपराध करने पर 5 साल की कैद और ₹10 लाख का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार अपराध करने पर सज़ा 7 साल की कैद और ₹10 लाख का जुर्माना हो सकता है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दंड
धारा 294:
- अश्लील सामग्री बेचना, वितरित करना, प्रदर्शित करना या प्रसारित करना अपराध है। पहली बार अपराध करने पर 2 साल तक की कैद और ₹5,000 का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार अपराध करने पर 5 साल तक की कैद और ₹10,000 का जुर्माना हो सकता है।
धारा 295:
- बच्चे को अश्लील सामग्री दिखाना, बेचना, किराए पर देना या वितरित करना अपराध है। पहली बार अपराध करने पर 3 साल तक की कैद और ₹2,000 का जुर्माना हो सकता है।
- दूसरी बार अपराध करने पर 7 साल तक की कैद और ₹5,000 का जुर्माना हो सकता है।
धारा 296:
- सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील गाने गाना या अश्लील हरकतें करना 3 महीने की कैद, ₹1,000 का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
भारत में पोर्नोग्राफी बाजार का तेजी से विकास
- 2026 तक भारत में मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 1.2 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। इसके अलावा, लोकप्रिय वेबसाइट पोर्नहब ने बताया कि, औसतन, भारतीय उपयोगकर्ता उनकी साइट पर प्रति सत्र 8 मिनट और 39 सेकंड बिताते हैं।
- इसके अलावा, पोर्न देखने वाले 44% उपयोगकर्ता 18 से 24 वर्ष की आयु के हैं, जबकि 41% 25 से 34 वर्ष के बीच के हैं।
- Google की 2021 की रिपोर्ट में, पोर्नोग्राफी देखने वाले लोगों की सबसे अधिक संख्या के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर है।
आगे की राह
- चाइल्ड पोर्नोग्राफी की परिभाषा को स्पष्ट करने और दंड को मजबूत करने के लिए POCSO और IT अधिनियमों में संशोधन करें।
- स्कूलों में व्यापक यौन शिक्षा लागू करें, चाइल्ड पोर्नोग्राफी के कानूनी और नैतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करें।
- चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित मामलों को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए पुलिस और न्यायपालिका के लिए प्रशिक्षण को बढ़ाएं।
- चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खतरों और कानूनी परिणामों के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने के लिए अभियान शुरू करें।
- बच्चों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गैर सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसियों और समुदायों के बीच साझेदारी को बढ़ावा दें।