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आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल नियामक समिति

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल नियामक समिति

चर्चा में क्यों:- भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के नियमन से जुड़े विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के हितों के टकराव को सत्यापित करने की प्रक्रिया में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इन संशोधनों में निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी प्रावधान नहीं किया गया है।    

संशोधनों का प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट का आदेश    

  • केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2024 को ‘खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण नियम, 1989’ में संशोधन के लिए एक मसौदा अधिसूचना जारी की। 
  • यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत आता है।
  • इस प्रस्ताव का उद्देश्य जीएमओ (GMO) के उत्पादन और आयात से जुड़े नियमन में पारदर्शिता लाना है। 
  • यह अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के 23 जुलाई 2024 के एक आदेश के बाद आई, जिसमें केंद्र सरकार को सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से GM फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने का निर्देश दिया गया था।

विशेषज्ञों की आपत्तियाँ

  • पर्यावरणविदों और अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्रस्तावित संशोधनों में कोई ठोस प्रावधान नहीं है जो यह सुनिश्चित करे कि GM फसल विकसित करने वाले व्यक्ति या संगठन नियामक समितियों के निर्णय-निर्माण में भाग न लें।
  • संशोधन के एक नियम के अनुसार, यदि कोई विशेषज्ञ सदस्य किसी ऐसे एजेंडा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है, जो समिति की बैठक में विचाराधीन है, तो उसे बैठक से पहले अपने हित का खुलासा करना होगा। 
  • इसके बाद वह सदस्य समिति की चर्चा या विचार-विमर्श में भाग नहीं ले सकेगा, सिवाय इसके कि यदि समिति विशेष रूप से उसकी पेशेवर सलाह मांगे।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह नियम बहुत संकीर्ण दायरे में है और केवल बैठक के किसी विशिष्ट एजेंडा तक सीमित है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मूल भावना कमजोर हो जाती है।

हितों के टकराव पर “Coalition for a GM Free India” की प्रतिक्रिया

  • “Coalition for a GM Free India” नामक संगठन ने 12 फरवरी को एक बयान जारी कर कहा कि प्रस्तावित नियम यह मानकर चलते हैं कि हितों का टकराव केवल किसी बैठक के विशेष एजेंडा तक सीमित होता है, जबकि यह समस्या कहीं अधिक व्यापक है।
  • संगठन का कहना है कि यदि कोई विशेषज्ञ, जिसका हितों का टकराव सीधे तौर पर किसी एजेंडा से नहीं जुड़ा है, फिर भी पर्यावरण में जीएमओ की रिलीज़ की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। 
  • यह नियमों और परीक्षण प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकता है, जिससे उनके स्वयं के जीएमओ उत्पादों को आसानी से मंजूरी मिल सकती है।
  • संगठन ने यह भी मांग की कि ऐसे विशेषज्ञ, जिनका स्वयं या उनके परिवार के सदस्यों (जीवनसाथी, भाई-बहन, संतान या माता-पिता) का जीएमओ से कोई सीधा संबंध हो, उन्हें किसी भी नियामक समिति या निर्णय-निर्माण निकाय से बाहर रखा जाना चाहिए।

संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी

  • प्रस्तावित संशोधनों को 31 दिसंबर से 60 दिनों तक जनता की आपत्तियों और सुझावों के लिए खुला रखा गया है।
  • हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिसूचना के अनुसार हितों के टकराव को रोकने की पूरी जिम्मेदारी स्वयं विशेषज्ञ सदस्य पर डाल दी गई है, जिससे संशोधन का मूल उद्देश्य ही विफल हो सकता है।

निजी संगठनों को निर्णय-निर्माण से बाहर रखने की माँग

  • विशेषज्ञों ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि प्रस्तावित संशोधनों में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो सार्वजनिक-निजी साझेदारियों, जैसे कि Biotech Consortium India Limited (BCIL) जैसे संगठनों को निर्णय-निर्माण प्रक्रिया से बाहर रखे।
  • इन संगठनों की भागीदारी से जीएमओ से जुड़े परीक्षण और स्वीकृति प्रक्रियाएँ प्रभावित हो सकती हैं। 

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें वे फसलें हैं जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीकों से बदला गया है। इस प्रक्रिया में, एक जीव या पौधे के जीन को दूसरे पौधे में डालकर नई प्रजाति विकसित की जाती है। इसका उद्देश्य फसलों में वांछित गुण, जैसे कीट प्रतिरोध, सूखा सहनशीलता, या पोषक तत्वों की वृद्धि, उत्पन्न करना है। 

GM फसलों के लाभ:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के कई लाभ हैं, जो कृषि उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करते हैं।

1. उच्च उत्पादकता: 

  • GM फसलें पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक उपज देती हैं। 
  • उदाहरण के लिए, बीटी कपास (Bt Cotton) की खेती से कपास की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2002 में इसकी शुरुआत के बाद एक दशक में कपास का उत्पादन दुगुने से भी अधिक हो गया। 

2. कीट प्रतिरोध:  

  • GM फसलों में कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता होती है, जिससे कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है। 
  • उदाहरण के लिए, बीटी कपास में बैसिलस थुरिंजिएंसिस नामक बैक्टीरिया का जीन शामिल किया गया है, जो कीटों के लिए हानिकारक विष उत्पन्न करता है, जिससे कीटनाशकों के उपयोग में कमी आती है।   

3. पर्यावरणीय सहनशीलता:  

  • GM फसलें सूखा और बाढ़ जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होती हैं। 
  • इन फसलों को इस प्रकार विकसित किया गया है कि वे पर्यावरणीय तनावों के प्रति बेहतर लचीलापन दिखा सकें, जिससे कृषि उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है। 

GM फसलों के नुकसान:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के कुछ संभावित नुकसान निम्नलिखित हैं:

1. लागत में वृद्धि:

  • किसानों को GM फसलों के बीज हर बार नए सिरे से खरीदने पड़ते हैं, क्योंकि इन फसलों के बीजों का पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता। 
  • इससे किसानों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। 
  • इसके अतिरिक्त, बीजों की आपूर्ति पर कुछ बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो सकता है, जिससे किसानों की निर्भरता बढ़ती है।   
2. जैव विविधता पर प्रभाव: 
  • GM फसलों के व्यापक उपयोग से पारंपरिक फसलों की विविधता कम हो सकती है, जिससे जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • यह मोनोक्रॉपिंग (एक ही फसल की बार-बार खेती) को बढ़ावा देता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।  

3. स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताएँ:  

  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि GM फसलों का दीर्घकालिक उपयोग स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है। 
  • उदाहरण के लिए, GM फसलों के कारण ‘सुपरवीड्स’ और ‘सुपरबग्स’ का उभरना देखा गया है, जो रसायनों के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं, जिससे कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के उपयोग में वृद्धि होती है। 
  • इसके अलावा, मिट्टी की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।    

भारत में GM फसलों की स्थिति:

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों की स्थिति जटिल और विकासशील है। वर्तमान में, बीटी कपास (Bt Cotton) भारत में व्यावसायिक खेती के लिए स्वीकृत एकमात्र GM फसल है। हालांकि, अन्य GM फसलों की स्वीकृति और उपयोग को लेकर विभिन्न स्तरों पर चर्चा और विवाद जारी हैं।    

GM सरसों (GM Mustard):
  • हाल ही में, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने GM सरसों की सिफारिशों को मंजूरी दी है। 
  • सरकार ने अक्टूबर 2022 में आयातित सरसों के तेल पर निर्भरता कम करने के लिए GM सरसों के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी दी थी।    
  • हालांकि, कार्यकर्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय जाने के बाद परीक्षण रोक दिए गए थे। 
  • कथित तौर पर GM सरसों पारंपरिक किस्मों की तुलना में 28% अधिक उपज देती है, हालांकि आलोचक गैर-स्वदेशी लक्षणों और स्वतंत्र परीक्षण के बारे में प्रश्न उठाते हैं।  
बीटी बैंगन (Bt Brinjal):
  • बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को लेकर भी विवाद जारी है। 
  • GM फसलों का विरोध पर्यावरण, स्वास्थ्य और व्यावसायिक आधार पर हो रहा है। 
  • आलोचकों का कहना है कि ये फसलें भारत की समृद्ध जैव विविध संपदा को नष्ट कर देंगी और लाखों किस्मों की फसलों की जगह ले लेंगी। 
अन्य GM फसलें:
  • चना, अरहर, मक्का और गन्ना जैसी अन्य फसलें विभिन्न शोध चरणों में हैं।
  • सरकार ने आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता कम करने के लिए GM सरसों के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी दी है। 
  • हालांकि, कार्यकर्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय जाने के बाद परीक्षण रोक दिए गए थे।  

विवाद और चिंताएँ:  

  • GM फसलों के विरोध में पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और व्यावसायिक चिंताएँ शामिल हैं। 
  • आलोचकों का मानना है कि ये फसलें जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकती हैं और किसानों की बीज कंपनियों पर निर्भरता बढ़ा सकती हैं। 
  • इसके अलावा, GMफसलों के दीर्घकालिक प्रभावों पर भी सवाल उठाए जाते हैं।    

 

स्रोत – डाउन टू अर्थ

 

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