भूजल में फ्लोराइड प्रदूषण |
चर्चा में क्यों:- सोनभद्र जिले के भूजल में अत्यधिक फ्लोराइड की मौजूदगी की पुष्टि ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय शासन के क्षेत्र में गंभीर चिंता पैदा कर दी है। उत्तर प्रदेश जल निगम की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि जिले की 120 से अधिक बस्तियों का जल फ्लोराइड से प्रदूषित है, जिससे लगभग 2 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं। यह समस्या पहली बार वर्ष 2013 में उजागर हुई थी, लेकिन अब यह एक गंभीर स्वास्थ्य आपदा का रूप ले चुकी है, क्योंकि स्थानीय निवासियों में फ्लोरोसिस के लक्षण तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
UPSC पाठ्यक्रम: प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की समसामयिक घटनाएँ। मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन III: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरण प्रभाव आकलन। |
पृष्ठभूमि
WHO के अनुमानों के अनुसार, भारत में फ्लोरोसिस से प्रभावित वैश्विक आबादी का लगभग 25% हिस्सा रहता है। फ्लोराइड, दंत स्वास्थ्य के लिए कम मात्रा (0.7-1.2 मिलीग्राम/लीटर) में लाभदायक होते हुए भी, 1.5 मिलीग्राम/लीटर की सीमा से आगे विषाक्त हो जाता है, जिससे कंकाल और दंत फ्लोरोसिस हो जाता है।
फ्लोराइड (Fluoride)
- फ्लोराइड (Fluoride) एक स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला खनिज है जो पृथ्वी की पर्पटी में अनेक रूपों में मौजूद रहता है।
- यह आमतौर पर जल स्रोतों, मिट्टी, चट्टानों, और पौधों में पाया जाता है।
- एक सीमित मात्रा में फ्लोराइड दांतों की सड़न से रक्षा करता है, परंतु इसकी अधिक मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।
फ्लोराइड और भूजल: एक प्राकृतिक संकट
- भारत में फ्लोराइड संदूषण मुख्य रूप से भूगर्भीय है, जिसका अर्थ है कि यह भूजल में ग्रेनाइट जैसे फ्लोराइड युक्त खनिजों के प्राकृतिक विघटन के परिणामस्वरूप होता है।
- आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों वाले क्षेत्र अधिक संवेदनशील होते हैं।
- सोनभद्र, जिसे ‘भारत की ऊर्जा राजधानी’ कहा जाता है, भूगर्भीय रूप से ग्रेनाइट से समृद्ध है, इसलिए स्वाभाविक रूप से फ्लोराइड रिसाव का खतरा है।
संवैधानिक दृष्टिकोण
1. अनुच्छेद 21 – जीवन का अधिकार
- “किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तभी वंचित किया जा सकता है जब विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किया गया हो।”
- न्यायिक व्याख्या: भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार करते हुए इसमें स्वस्थ जीवन, स्वच्छ पर्यावरण, और सुरक्षित पेयजल को भी शामिल किया है।
- प्रासंगिक उदाहरण:“सुरक्षित पेयजल तक पहुंच मानव जीवन की गरिमा का अनिवार्य हिस्सा है।” – सुप्रीम कोर्ट, Subhash Kumar v. State of Bihar (1991) MC Mehta v. Union of India (1987) मामले में पर्यावरणीय प्रदूषण को जीवन के अधिकार का उल्लंघन माना गया। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी नागरिक को पीने के लिए स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, तो यह सीधे-सीधे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जा सकता है।
2. अनुच्छेद 47 – राज्य का कर्तव्य
- “राज्य का कर्तव्य होगा कि वह पोषण के स्तर और जनस्वास्थ्य को बढ़ाए तथा मादक पदार्थों का उपभोग (जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं) को प्रतिबंधित करे।”
- राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत संविधान में दिए गए नैतिक और सामाजिक कर्तव्यों का मार्गदर्शन करते हैं।
- अनुच्छेद 47 में विशेष रूप से जन स्वास्थ्य (Public Health) को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
- इसका सीधा अर्थ है कि राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को साफ, सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक जल उपलब्ध कराए।
- जब सोनभद्र जैसे क्षेत्रों में वर्षों से फ्लोराइड युक्त दूषित जल के सेवन से लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं, तो यह अनुच्छेद 47 के उद्देश्य की अवहेलना मानी जाती है।
हाल ही में हुए घटनाक्रम
जल निगम रिपोर्ट, मार्च 2025
- उत्तर प्रदेश जल निगम के अनुसार, कई गांवों में फ्लोराइड का स्तर 2 मिलीग्राम/लीटर से अधिक हो गया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्वीकार्य सीमा से कहीं अधिक है।
- रिपोर्ट ने कार्रवाई को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप सोनगंगा जैसी नदियों से उपचारित सतही जल की टैंकर आधारित आपूर्ति।
- जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइनों की स्थापना, हालांकि देरी से।
- मोबाइल ऐप के माध्यम से फ्लोराइड डेटा का परीक्षण और अपलोड करने के लिए प्रशिक्षित महिलाओं को ‘जल सखियों’ की तैनाती।
स्वास्थ्य पर प्रभाव की रिपोर्ट
- स्केलेटल फ्लोरोसिस, बच्चों में पीले दांत, जोड़ों में अकड़न और गतिहीनता के कई मामले सामने आए हैं, खासकर पडारच और कुडवा गांवों में।
- कई निवासी बिस्तर पर पड़े हैं या बिना सहारे के चलने में असमर्थ हैं।
मुद्दे का महत्व
सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल
- स्केलेटल फ्लोरोसिस के लिए तत्काल कोई इलाज न होने के कारण, सुरक्षित पानी के माध्यम से रोकथाम ही एकमात्र विकल्प है।
- यह फ्लोराइड संदूषण को एक तत्काल स्वास्थ्य और मानवाधिकार मुद्दा बनाता है।
ग्रामीण भेद्यता
- सोनभद्र की आबादी मुख्यतः कृषि और गरीब है।
- चिकित्सा पहुँच, जागरूकता और बुनियादी ढाँचे की कमी उनकी सामाजिक-आर्थिक भेद्यता को बढ़ाती है।
पर्यावरण शासन परीक्षण
- यह संकट नीति नियोजन और कार्यान्वयन के बीच अंतर को उजागर करता है, विशेष रूप से जल शासन और स्वास्थ्य क्षेत्रों में।
चुनौतियाँ
1. भूगर्भीय स्रोत
- औद्योगिक प्रदूषण के विपरीत, फ्लोराइड प्राकृतिक रूप से होता है, जिससे इसे पूरी तरह से समाप्त करना मुश्किल हो जाता है।
2. बुनियादी ढाँचे की कमी
- बिना पर्याप्त प्रशिक्षण के ग्राम पंचायतों को सौंपे गए गैर-कार्यात्मक उपचार संयंत्र।
- स्थलाकृतिक चुनौतियों के कारण पाइपलाइन परियोजनाओं में देरी।
3. जागरूकता और व्यवहार संबंधी बाधाएँ
- निवासी अक्सर भूजल को उबालते हैं, इस बात से अनजान कि इससे फ्लोराइड की सांद्रता बढ़ जाती है।
4. नीति कार्यान्वयन में देरी
- 2013 में शुरुआती चेतावनियों के बावजूद, जल आपूर्ति योजनाओं को लागू होने में वर्षों लग गए, जो प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाता है।
5. भूजल पर अत्यधिक निर्भरता
- सतही जल अवसंरचना की अपर्याप्तता के कारण बोरवेल और हैंडपंप का अनियमित उपयोग आम बात है।
डेटा और रिपोर्ट
- WHO: पीने के पानी में फ्लोराइड की अधिकतम सीमा 1.5 mg/L है।
- जल शक्ति मंत्रालय: 19 भारतीय राज्य फ्लोराइड से प्रभावित हैं।
- फ्लोरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPPCF): पूरे भारत में 60 मिलियन से अधिक लोग जोखिम में हैं।
- उत्तर प्रदेश जल निगम (2025): सोनभद्र में 120 से अधिक बस्तियाँ फ्लोराइड से दूषित हैं।
- नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (2023): जल गुणवत्ता संकेतकों पर उत्तर प्रदेश निचले पायदान पर है।
सरकारी उपाय/योजनाएँ
1. जल जीवन मिशन (2019-वर्तमान)
- 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करने का लक्ष्य।
- सोनभद्र में: 12 परियोजनाएँ शुरू की गईं, मार्च 2025 तक 10 चालू हो गईं।
2. फ्लोरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPPCF, 2008)
- निदान, निगरानी और जागरूकता पर ध्यान केंद्रित।
- सोनभद्र जैसे दूरदराज के ग्रामीण जिलों में सीमित पहुँच।
3. स्वजल योजना
- ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत, समुदाय-नेतृत्व वाली पेयजल परियोजना।
- प्रभावित फ्लोराइड बेल्ट में कार्यान्वयन में अनियमितता देखी गई है।
4. जल शक्ति अभियान
- भूजल पर निर्भरता कम करने के लिए वर्षा जल संचयन और जलभृत पुनर्भरण पर जोर।
अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यास
1. केन्या
- ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा से चलने वाली डीफ्लोराइडेशन इकाइयाँ उपयोग की जाती हैं।
2. USA
- सख्त सुरक्षित पेयजल अधिनियम (SDWA) फ्लोराइड निगरानी और निष्कासन प्रौद्योगिकियों को अनिवार्य बनाता है।
3. श्रीलंका
- ग्रामीण फ्लोराइड हॉटस्पॉट में रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) संयंत्रों की सफल तैनाती।
भारत स्थानीय RO -आधारित संयंत्रों, सामुदायिक जागरूकता और विकेंद्रीकृत जल प्रशासन का उपयोग करके एक हाइब्रिड मॉडल अपना सकता है।
आगे का रास्ता
1. त्वरित कार्यान्वयन
- जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन परियोजनाओं में तेजी लाना।
- तीसरे पक्ष के ऑडिट और पारदर्शी समयसीमा सुनिश्चित करना।
2. संधारणीय विकल्प
- वर्षा जल संचयन और उपचारित सतही जल आपूर्ति को बढ़ावा दें।
- फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों में बोरवेल की अनुमति सीमित करें।
3. विकेंद्रीकृत जल प्रशासन
- पंचायतों को सशक्त बनाएं और डीफ्लोराइडेशन निगरानी के लिए जल सखियों को प्रशिक्षित करें।
- स्थानीय उपचार संयंत्रों के लिए रखरखाव निधि और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान करें।
4. स्वास्थ्य और पोषण हस्तक्षेप
- जल्दी पता लगाने के लिए मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयाँ शुरू करें।
- कैल्शियम, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर फ्लोराइड-न्यूट्रलाइज़िंग आहार वितरित करें।
5. सामुदायिक जुड़ाव
- फ्लोराइड के जोखिम, उबलते मिथकों और सुरक्षित पानी की आदतों के बारे में व्यापक जागरूकता।
- विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति (ST) बहुल बस्तियों में निगरानी में नागरिक समाज को शामिल करें।
प्रश्न:भारत में फ्लोराइड संदूषण के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
- भारत में फ्लोराइड संदूषण मुख्य रूप से मानवनिर्मित (Anthropogenic) कारणों से होता है।
- स्केलेटल फ्लोरोसिस का कोई ज्ञात इलाज नहीं है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन पीने के पानी में फ्लोराइड की अधिकतम सीमा 4 mg/L निर्धारित करता है।
कूट :
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2 और 3