परिचय: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) देश में वित्तीय जवाबदेही तथा पारदर्शिता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
CAG से आशय:
- CAG भारत के संविधान के अनुसार एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
- CAG भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग के प्रमुख तथा सार्वजनिक धन के मुख्य संरक्षक हैं।
- यह वह संस्था है जिसके माध्यम से सरकार तथा अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (वे सभी जो सार्वजनिक धन खर्च करते हैं) की संसद तथा राज्य विधानमंडलों तथा उनके माध्यम से जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
- श्री गिरीश चंद्र मुर्मू भारत के वर्तमान CAG हैं।
CAG का कार्यालय कब अस्तित्व में आया:
- महालेखाकार का कार्यालय 1858 में स्थापित किया गया था। तथा 1860 में सर एडवर्ड ड्रमंड को प्रथम महालेखा परीक्षक नियुक्त किया गया।
- भारत के महालेखा परीक्षक को भारत सरकार का महालेखा परीक्षक तथा महालेखाकार कहा जाने लगा।
- 1866 में, इस पद का नाम बदलकर लेखा महानियंत्रक कर दिया गया तथा 1884 में, इसे भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के रूप में पुनः नामित किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत, महालेखा परीक्षक सरकार से स्वतंत्र हो गया।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 ने संघीय व्यवस्था में प्रांतीय महालेखा परीक्षक की व्यवस्था करके महालेखा परीक्षक की स्थिति को और मजबूत किया।
- अधिनियम में नियुक्ति तथा सेवा प्रक्रियाओं का भी वर्णन किया गया तथा भारत के महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों का संक्षिप्त विवरण दिया गया।
- 1936 के लेखा तथा लेखा परीक्षा आदेश ने महालेखा परीक्षक के विस्तृत लेखांकन तथा लेखा परीक्षा कार्य प्रदान किए।
- यह व्यवस्था 1947 में भारत की आजादी तक अपरिवर्तित रही। आजादी के बाद, 1949 के भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की स्थापना का प्रावधान था।
- CAG का अधिकार क्षेत्र 1958 में जम्मू तथा कश्मीर तक विस्तारित कर दिया गया।
- 1971 में केंद्र सरकार ने नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां तथा सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 लागू किया। इस अधिनियम ने CAG को केंद्र तथा राज्य सरकारों के लिए लेखांकन तथा लेखा परीक्षा कर्तव्यों दोनों के लिए जिम्मेदार बना दिया।
- 1976 में CAG को लेखांकन कार्यों से मुक्त कर दिया गया।
- 1990 के दशक से CAG में तेजी से कम्प्यूटरीकरण तथा आधुनिकीकरण हुआ है तथा भारतीय भ्रष्टाचार की व्यापक प्रकृति ने CAG को सतर्क रखा है तथा इसके द्वारा भारतीय इतिहास के कुछ सबसे खराब तथा सबसे विवादास्पद भ्रष्टाचार घोटालों का ऑडिट तथा जांच की गयी है।
CAG के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 148 CAG की नियुक्ति, शपथ तथा सेवा की शर्तों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 149 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों तथा शक्तियों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 150 के अनुसार संघ तथा राज्यों के खाते उसी रूप में रखे जाएंगे जैसा राष्ट्रपति, CAG की सलाह पर निर्धारित कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 151 के तहत संघ के खातों से संबंधित भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी जाएगी तथा राष्ट्रपति रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
- किसी राज्य के खातों से संबंधित भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट राज्य के राज्यपाल को सौंपी जाएगी तथा राज्यपाल रिपोर्ट को राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा।
- अनुच्छेद 279 – “शुद्ध आय” की गणना भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक द्वारा सुनिश्चित तथा प्रमाणित की जाती है, जिसका प्रमाण पत्र अंतिम है।
- तीसरी अनुसूची – भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची की धारा IV सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के रूप को निर्धारित करती है।
- छठी अनुसूची – इस अनुसूची के अनुसार, जिला परिषद या क्षेत्रीय परिषद को राष्ट्रपति के अनुमोदन से CAG द्वारा निर्धारित प्रारूप में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा इन निकायों के खातों का ऑडिट उस तरीके से किया जाता है जैसा CAG उचित समझे, तथा ऐसे खातों से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी जाएगी जो उन्हें परिषद के समक्ष रखवाएंगे।
नियुक्ति एवं कार्यकाल:
नियुक्ति:CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित वारंट तथा मुहर के माध्यम से की जाती है।
पद की शपथ: कर्तव्यों को संभालने से पहले, CAG भारत के संविधान, संप्रभुता तथा अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेता है।
कार्यकाल: CAG का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है। कदाचार या अक्षमता के लिए संसदीय प्रस्ताव के बाद निष्कासन किया जाता है।
सुरक्षा प्रावधान:
कार्यकाल की सुरक्षा: CAG को कार्यकाल की सुरक्षा प्राप्त है, तथा हटाने की प्रक्रियाएँ संविधान में उल्लिखित हैं।
वेतन निर्धारण: संसद CAG का वेतन निर्धारित करती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर हो।
प्रशासनिक स्वतंत्रता: प्रशासनिक शक्तियां तथा सेवा शर्तें राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जिससे स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।
वित्तीय स्वायत्तता: CAG के कार्यालय खर्चों को संसदीय मतदान से छूट देते हुए भारत की संचित निधि से व्यय किया जाता है।
कर्तव्य तथा शक्तियाँ:
- CAG विभिन्न निधियों का ऑडिट करता है, जिसमें भारत की समेकित निधि, आकस्मिकता निधि तथा राज्यों के सार्वजनिक खाते शामिल हैं।
- ऑडिट में नियमों तथा प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करते हुए व्यय, व्यापार, विनिर्माण खाते आदि शामिल होते है।
- केंद्र तथा राज्य स्तर पर राजस्व संग्रह तथा आवंटन प्रक्रियाओं की जांच करता है।
- खातों के प्रारूप पर राष्ट्रपति को सलाह प्रदान करता है तथा लोक लेखा समिति के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
- अंतिम मूल्यांकन प्रदान करते हुए, करों या शुल्कों की शुद्ध आय को प्रमाणित करता है।
- CAG केंद्र या राज्य के राजस्व से पर्याप्त रूप से वित्तपोषित सभी निकायों तथा प्राधिकरणों की प्राप्तियों तथा व्यय का ऑडिट करता है; सरकारी कंपनियाँ; अन्य निगम तथा निकाय, जब संबंधित कानूनों द्वारा आवश्यक हो।
- राष्ट्रपति या राज्यपाल के अनुरोध पर CAG किसी स्थानीय निकाय या अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है।
- CAG, राष्ट्रपति को उस प्रपत्र के निर्धारण के संबंध में सलाह देता है जिसमें केंद्र तथा राज्यों के खाते रखे जाएंगे।
- CAG केंद्र के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है,और राष्ट्रपति रिपोर्ट को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखेगा।
- किसी राज्य के खातों से संबंधित अपनी ऑडिट रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है,और राज्यपाल रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल के समक्ष रखेगा।
- संसद की लोक लेखा समिति के मार्गदर्शक, मित्र तथा दार्शनिक के रूप में भी कार्य करता है।
लेखापरीक्षा निगमों में भूमिका:
विविध ऑडिटिंग संबंध: निगम की प्रकृति के आधार पर सार्वजनिक निगमों का सीधे या निजी ऑडिटरों के माध्यम से ऑडिट करता है।
ऑडिट बोर्ड: 1968 में स्थापित ऑडिट बोर्ड, विशेष उद्यम ऑडिट के तकनीकी पहलुओं को संभालता है।
चुनौतियाँ:
- वर्तमान समय में ऑडिट जटिल होते जा रहे हैं क्योंकि भ्रष्टाचार तथा कुप्रशासन के रूपों का पता लगाना बेहद मुश्किल है।
- केंद्र तथा राज्य सरकारों पर कड़ी नजर रखने के ऐतिहासिक कार्य के अलावा, सीएजी अब कई सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं का ऑडिट कर रहा है।
- CAG की नियुक्ति के लिए संविधान या क़ानून में कोई मानदंड या प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है।
- इसने कार्यपालिका को अपनी पसंद के व्यक्ति को CAG के रूप में नियुक्त करने की एकमात्र शक्ति प्रदान कर दी है। यह दुनिया भर में प्रचलित अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के विरुद्ध है।
- CAG को किसी भी सरकारी कार्यालय का निरीक्षण करने तथा किसी भी खाते की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। हालाँकि, व्यवहार में रिकॉर्ड की आपूर्ति अक्सर अस्वीकार कर दी जाती है।
आलोचना तथा परिप्रेक्ष्य:
पॉल एच एप्पलबी ने CAG की भूमिका की आलोचना की, सुझाव दिया कि यह निर्णय लेने में बाधा डालता है तथा कार्यालय को समाप्त करने की सिफारिश की।
आगे की राह:
- सभी निजी-सार्वजनिक भागीदारी (पीपीपी), पंचायती राज संस्थानों तथा सरकार द्वारा वित्त पोषित समितियों को CAG के दायरे में लाएं।
- मुख्य सतर्कता आयुक्त (CVC) के चयन की तर्ज पर एक नया सीएजी चुनने के लिए एक कॉलेजियम प्रकार का तंत्र।
- जलवायु परिवर्तन से लेकर पीपीपी तक, सरकारी फंडिंग तथा सार्वजनिक वस्तुओं की ऑडिटिंग करने में सीएजी को अपने ऑडिट तंत्र को बदलना होगा।
- CAG को सतत विकास लक्ष्यों तथा वस्तु एवं सेवा कर के कार्यान्वयन जैसे मुद्दों का ऑडिट करने के लिए खुद को तैयार करना होगा।