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नया आयकर विधेयक 2025 

नया आयकर विधेयक 2025 

चर्चा में क्यों:- भारत सरकार ने 2025 के लिए नया आयकर विधेयक तैयार किया है, जिसे संसद में पेश किया जाएगा। यह विधेयक मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 की जगह लेगा और आसान भाषा, सरलीकृत प्रावधानों, अनावश्यक शर्तों को हटाने और ‘टैक्स ईयर’ (कर वर्ष) की नई अवधारणा को पेश करेगा। हालांकि, यह विधेयक किसी बड़े ढांचागत परिवर्तन को शामिल नहीं करता, बल्कि इसे सरल और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक कदम बताया जा रहा है।     

नए आयकर विधेयक 2025 की प्रमुख विशेषताएँ

1. ‘टैक्स ईयर’ की नई अवधारणा

  • नया विधेयक आकलन वर्ष’ (Assessment Year) को हटाकर ‘टैक्स ईयर’ (Tax Year) की अवधारणा पेश करता है
  • ‘टैक्स ईयर’ प्रत्येक वित्तीय वर्ष की अप्रैल से शुरू होगा और अगले वर्ष 31 मार्च तक चलेगा
  • यदि कोई नया व्यवसाय शुरू किया जाता है, तो उसका टैक्स ईयर उसके स्थापना की तारीख से लेकर उस वित्तीय वर्ष के अंत तक माना जाएगा। 

2. मूल संरचना में कोई बड़ा बदलाव नहीं

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह विधेयक मौजूदा कर प्रणाली को अधिक सुगम और स्पष्ट बनाने के लिए एक सरलीकरण प्रयास है।
  • कर दंड (Penalties) और अनुपालन (Compliance) में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है।
  • यह अप्रैल 2026 से लागू हो सकता है

3. आभासी डिजिटल संपत्तियों को ‘संपत्ति’ में शामिल किया गया

  • क्रिप्टोकरेंसी और अन्य डिजिटल संपत्तियों को ‘पूंजीगत संपत्ति’ (Capital Asset) के रूप में परिभाषित किया गया है
  • अब इसे भूमि, भवन, शेयर, प्रतिभूतियाँ (Securities), सोना, आभूषण, पुरातात्त्विक संग्रह, चित्रकला, मूर्तियाँ आदि के साथ रखा गया है।

4. सभी कर प्रावधानों को तालिकाबद्ध किया गया

  • कर कटौती स्रोत (TDS) से संबंधित प्रावधानों, संभावित कराधान दरों (Presumptive Taxation Rates), कर आकलन की समय-सीमा आदि को तालिकाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है
  • इससे करदाताओं के लिए कानून को समझना आसान होगा।
5. विवाद समाधान पैनल को स्पष्ट दिशा-निर्देश
  • अब DRP के तहत निर्णय लेने की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
  • पहले के कानून में इस प्रक्रिया की सुस्पष्ट व्याख्या नहीं थी।  

6. मौजूदा आयकर अधिनियम के पुराने प्रावधान हटाए गए

  • सेक्शन 54E को हटाया गया, जो अप्रैल 1992 से पहले की पूंजीगत संपत्ति की बिक्री पर कर छूट प्रदान करता था।
  • पुराने कर कटौती प्रावधानों को संगठित और अद्यतन किया गया है। 
  • कई अप्रचलित छूटों को समाप्त कर दिया गया है।  

7. पुरानी कर प्रणाली को बनाए रखा गया

  • नए और पुराने कर ढांचे को एक साथ रखा गया है, जिससे करदाताओं के पास कराधान विकल्प उपलब्ध रहेगा।
  • सरकार दोहरी कर संरचना को जारी रखने की योजना बना रही है।  

टैक्स ईयर’ बनाम ‘आकलन वर्ष’

1.मौजूदा व्यवस्था:
  • वर्तमान में, आयकर आकलन वर्ष  का उपयोग किया जाता है, जिसमें पिछले वित्तीय वर्ष की आय का आकलन किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2024-25 की आय को आकलन वर्ष 2025-26 में आँका जाएगा। 

2. नए विधेयक के अनुसार:

  • अब कर वर्ष (Tax Year) लागू होगा, जिसका संबंध कर अर्जित करने की अवधि से होगा।  
  • इससे कर रिपोर्टिंग प्रक्रिया अधिक लचीली हो सकती है और करदाताओं के लिए नियम सरल बन सकते हैं।   

3. सरलीकरण और संक्षिप्तीकरण के लाभ

  • 823 पन्नों से घटकर 622 पन्नों का विधेयक तैयार किया गया है
  • पहले अधिनियम में 298 धाराएँ (Sections) थींजिन्हें 536 क्लॉज (Clauses) में विस्तारित किया गया है
  • शेड्यूल की संख्या 14 से बढ़कर 16 कर दी गई है।
  • अनावश्यक कानूनी शब्दों जैसे “Notwithstanding” को “Irrespective of anything” से बदला गया है।

4. व्यापार करने में आसानी

  • आयकर अधिनियम में कम क्रॉस-रेफरेंस होंगे, जिससे करदाताओं को हर बार अन्य सेक्शनों या नियमों को देखने की जरूरत नहीं होगी। 
  • वेबसाइट्स और पोर्टल्स पर कर दाखिल करना (E-Filing) अधिक सहज और सरल होगा।  
  • टैक्स स्लैब और कटौतियों को समेकित किया गया है, जिससे व्यवसायों को कर योजना बनाने में सहूलियत होगी।   

नए विधेयक से उत्पन्न चुनौतियाँ   

टैक्स ईयर की नई अवधारणा:यह बदलाव करदाताओं को नए प्रारूप में ढलने के लिए समय की आवश्यकता देगा। नए मॉडल में डेटा रिपोर्टिंग और कर संग्रह की प्रक्रिया बदल सकती है।  

डिजिटल संपत्तियों पर कराधान:क्रिप्टोकरेंसी और अन्य आभासी संपत्तियों के कराधान पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता होगी।    

पुराने कानूनों से सामंजस्य:नए विधेयक के तहत कुछ प्रावधानों को दोबारा स्पष्ट करने की जरूरत होगी, ताकि भ्रम की स्थिति न बने।  

अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली से तुलना  

भारत में प्रस्तावित टैक्स ईयर मॉडल को कई देशों की कर प्रणाली के साथ तुलना किया जा सकता है:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): वहाँ कैलेंडर वर्ष (जनवरी-दिसंबर) के आधार पर कर प्रणाली है।
  • यूनाइटेड किंगडम (UK): वित्तीय वर्ष 6 अप्रैल से शुरू होता है।
  • ऑस्ट्रेलिया: कर वर्ष 1 जुलाई से 30 जून तक होता है।

भारत का नया मॉडल अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अधिक लचीला और आर्थिक गतिविधि-आधारित हो सकता है।

आगे की राह: नया आयकर विधेयक 2025 के सफल कार्यान्वयन के लिए रणनीति

1. सरकार का उद्देश्य और दृष्टिकोण 
  • नए आयकर विधेयक 2025 का मुख्य उद्देश्य आयकर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और करदाताओं के अनुकूल बनाना है।
  • यह विधेयक पुराने आयकर अधिनियम, 1961 को प्रतिस्थापित करेगा, जो पिछले 60 वर्षों में कई बार संशोधित हुआ था।
  • सरकार का ध्यान इस विधेयक को लागू करने के बाद करदाताओं की कठिनाइयों को कम करने और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने पर रहेगा।
2. विधेयक के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कदम  

i) करदाताओं को नई प्रणाली से अवगत कराना

  • विधेयक लागू होने के बाद, करदाताओं को नई कर प्रणाली को समझने में समय लगेगा।
  • इसलिए, सरकार को करदाता शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना होगा। इसमें शामिल हो सकते हैं:
  • ई-फाइलिंग पोर्टल पर गाइडलाइंस: करदाताओं के लिए स्टेप-बाय-स्टेप निर्देश।
  • सेमिनार और वेबिनार: कर पेशेवरों, CA और कंपनियों के लिए विशेष प्रशिक्षण।
  • सरल भाषा में कर मैनुअल: करदाताओं के लिए सरल हिंदी और अंग्रेजी भाषा में आयकर गाइड प्रकाशित करना।  

ii) तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर का उन्नयन

  • आयकर पोर्टल को उन्नत करना, जिससे करदाताओं को रिटर्न दाखिल करने में कोई कठिनाई न हो।
  • AI-आधारित हेल्पडेस्क बनाना, जो करदाताओं के सवालों के उत्तर तेजी से दे सके।
  • ऑनलाइन कर कैलकुलेटर और प्रभावी मोबाइल एप्लिकेशन उपलब्ध कराना।  
iii) कर अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रशिक्षण
  • नई कर प्रणाली पर आईटी अधिकारियों को प्रशिक्षित करना।
  • ऑनलाइन हेल्पडेस्क में अधिक कर्मियों की नियुक्ति, ताकि करदाताओं की समस्याओं का शीघ्र समाधान हो।

3. करदाताओं के लिए चुनौतियाँ और सरकार की जिम्मेदारी 

i) कर अनुपालन (Tax Compliance) को सरल बनाना

  • नए विधेयक के तहत, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि:
  • करदाता आसानी से अपनी आय की गणना कर सकें।
  • TDS, टैक्स स्लैब और कटौतियों (Deductions) की जानकारी स्पष्ट हो।
ii) MSME और छोटे व्यापारियों के लिए विशेष नीति
  • छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए विशेष कर प्रावधान और छूट दी जानी चाहिए।
  • छोटे व्यापारियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर टैक्स फाइलिंग सिखाने के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत है।

iii) विवाद समाधान प्रक्रिया को सरल बनाना

  • नए विधेयक में विवाद समाधान पैनल (DRP) को मजबूत किया गया है।
  • सरकार को कर विवादों को तेजी से हल करने के लिए अधिक सक्षम मध्यस्थता प्रणाली विकसित करनी होगी।
4. करदाताओं, विशेषज्ञों और सरकार के बीच सहयोग और संवाद

नए आयकर विधेयक 2025 को प्रभावी बनाने के लिए सरकार को विशेषज्ञों, उद्योग संघों, कर पेशेवरों और आम करदाताओं के साथ निरंतर संवाद बनाए रखना होगा।

i) सार्वजनिक सुझावों को शामिल करना

सरकार को चाहिए कि वह: 
  • करदाताओं से फीडबैक ले और आवश्यक संशोधनों को लागू करे।
  • कर विशेषज्ञों और उद्योग संघों से चर्चा कर समय-समय पर नीतियों में सुधार करे।
ii) एक मजबूत करदाता समर्थन प्रणाली बनाना
  • टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर और चैटबॉट्स का विस्तार किया जाए।
  • राज्य स्तर पर कर सहायता केंद्रों की स्थापना, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी नए कानून को आसानी से समझ सकें।
5. नए विधेयक के दीर्घकालिक प्रभाव

i) कर प्रणाली में पारदर्शिता और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस

  • सरल कर प्रणाली से व्यवसाय करने में आसानी होगी।
  • विदेशी निवेशकों और स्टार्टअप्स के लिए भारत में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

ii) कर संग्रहण में वृद्धि

  • डिजिटल कराधान प्रणाली से कर चोरी पर अंकुश लगेगा।
  • सरकार का राजस्व बढ़ेगा, जिससे बुनियादी ढांचे और कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा।

iii) भारत की कर प्रणाली का वैश्विक मानकीकरण

  • नया टैक्स ईयरमॉडल कई देशों के अनुरूप होगा, जिससे वैश्विक व्यापार में तालमेल बढ़ेगा।

 

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल नियामक समिति

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल नियामक समिति

चर्चा में क्यों:- भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के नियमन से जुड़े विशेषज्ञ समिति के सदस्यों के हितों के टकराव को सत्यापित करने की प्रक्रिया में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इन संशोधनों में निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी प्रावधान नहीं किया गया है।    

संशोधनों का प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट का आदेश    

  • केंद्र सरकार ने 31 दिसंबर 2024 को ‘खतरनाक सूक्ष्मजीवों/आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण नियम, 1989’ में संशोधन के लिए एक मसौदा अधिसूचना जारी की। 
  • यह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत आता है।
  • इस प्रस्ताव का उद्देश्य जीएमओ (GMO) के उत्पादन और आयात से जुड़े नियमन में पारदर्शिता लाना है। 
  • यह अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के 23 जुलाई 2024 के एक आदेश के बाद आई, जिसमें केंद्र सरकार को सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से GM फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने का निर्देश दिया गया था।

विशेषज्ञों की आपत्तियाँ

  • पर्यावरणविदों और अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्रस्तावित संशोधनों में कोई ठोस प्रावधान नहीं है जो यह सुनिश्चित करे कि GM फसल विकसित करने वाले व्यक्ति या संगठन नियामक समितियों के निर्णय-निर्माण में भाग न लें।
  • संशोधन के एक नियम के अनुसार, यदि कोई विशेषज्ञ सदस्य किसी ऐसे एजेंडा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है, जो समिति की बैठक में विचाराधीन है, तो उसे बैठक से पहले अपने हित का खुलासा करना होगा। 
  • इसके बाद वह सदस्य समिति की चर्चा या विचार-विमर्श में भाग नहीं ले सकेगा, सिवाय इसके कि यदि समिति विशेष रूप से उसकी पेशेवर सलाह मांगे।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह नियम बहुत संकीर्ण दायरे में है और केवल बैठक के किसी विशिष्ट एजेंडा तक सीमित है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मूल भावना कमजोर हो जाती है।

हितों के टकराव पर “Coalition for a GM Free India” की प्रतिक्रिया

  • “Coalition for a GM Free India” नामक संगठन ने 12 फरवरी को एक बयान जारी कर कहा कि प्रस्तावित नियम यह मानकर चलते हैं कि हितों का टकराव केवल किसी बैठक के विशेष एजेंडा तक सीमित होता है, जबकि यह समस्या कहीं अधिक व्यापक है।
  • संगठन का कहना है कि यदि कोई विशेषज्ञ, जिसका हितों का टकराव सीधे तौर पर किसी एजेंडा से नहीं जुड़ा है, फिर भी पर्यावरण में जीएमओ की रिलीज़ की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। 
  • यह नियमों और परीक्षण प्रक्रियाओं को कमजोर कर सकता है, जिससे उनके स्वयं के जीएमओ उत्पादों को आसानी से मंजूरी मिल सकती है।
  • संगठन ने यह भी मांग की कि ऐसे विशेषज्ञ, जिनका स्वयं या उनके परिवार के सदस्यों (जीवनसाथी, भाई-बहन, संतान या माता-पिता) का जीएमओ से कोई सीधा संबंध हो, उन्हें किसी भी नियामक समिति या निर्णय-निर्माण निकाय से बाहर रखा जाना चाहिए।

संशोधन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी

  • प्रस्तावित संशोधनों को 31 दिसंबर से 60 दिनों तक जनता की आपत्तियों और सुझावों के लिए खुला रखा गया है।
  • हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अधिसूचना के अनुसार हितों के टकराव को रोकने की पूरी जिम्मेदारी स्वयं विशेषज्ञ सदस्य पर डाल दी गई है, जिससे संशोधन का मूल उद्देश्य ही विफल हो सकता है।

निजी संगठनों को निर्णय-निर्माण से बाहर रखने की माँग

  • विशेषज्ञों ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि प्रस्तावित संशोधनों में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो सार्वजनिक-निजी साझेदारियों, जैसे कि Biotech Consortium India Limited (BCIL) जैसे संगठनों को निर्णय-निर्माण प्रक्रिया से बाहर रखे।
  • इन संगठनों की भागीदारी से जीएमओ से जुड़े परीक्षण और स्वीकृति प्रक्रियाएँ प्रभावित हो सकती हैं। 

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें वे फसलें हैं जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीकों से बदला गया है। इस प्रक्रिया में, एक जीव या पौधे के जीन को दूसरे पौधे में डालकर नई प्रजाति विकसित की जाती है। इसका उद्देश्य फसलों में वांछित गुण, जैसे कीट प्रतिरोध, सूखा सहनशीलता, या पोषक तत्वों की वृद्धि, उत्पन्न करना है। 

GM फसलों के लाभ:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के कई लाभ हैं, जो कृषि उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करते हैं।

1. उच्च उत्पादकता: 

  • GM फसलें पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक उपज देती हैं। 
  • उदाहरण के लिए, बीटी कपास (Bt Cotton) की खेती से कपास की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2002 में इसकी शुरुआत के बाद एक दशक में कपास का उत्पादन दुगुने से भी अधिक हो गया। 

2. कीट प्रतिरोध:  

  • GM फसलों में कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता होती है, जिससे कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है। 
  • उदाहरण के लिए, बीटी कपास में बैसिलस थुरिंजिएंसिस नामक बैक्टीरिया का जीन शामिल किया गया है, जो कीटों के लिए हानिकारक विष उत्पन्न करता है, जिससे कीटनाशकों के उपयोग में कमी आती है।   

3. पर्यावरणीय सहनशीलता:  

  • GM फसलें सूखा और बाढ़ जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होती हैं। 
  • इन फसलों को इस प्रकार विकसित किया गया है कि वे पर्यावरणीय तनावों के प्रति बेहतर लचीलापन दिखा सकें, जिससे कृषि उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है। 

GM फसलों के नुकसान:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के कुछ संभावित नुकसान निम्नलिखित हैं:

1. लागत में वृद्धि:

  • किसानों को GM फसलों के बीज हर बार नए सिरे से खरीदने पड़ते हैं, क्योंकि इन फसलों के बीजों का पुन: उपयोग नहीं किया जा सकता। 
  • इससे किसानों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। 
  • इसके अतिरिक्त, बीजों की आपूर्ति पर कुछ बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो सकता है, जिससे किसानों की निर्भरता बढ़ती है।   
2. जैव विविधता पर प्रभाव: 
  • GM फसलों के व्यापक उपयोग से पारंपरिक फसलों की विविधता कम हो सकती है, जिससे जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • यह मोनोक्रॉपिंग (एक ही फसल की बार-बार खेती) को बढ़ावा देता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।  

3. स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताएँ:  

  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि GM फसलों का दीर्घकालिक उपयोग स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है। 
  • उदाहरण के लिए, GM फसलों के कारण ‘सुपरवीड्स’ और ‘सुपरबग्स’ का उभरना देखा गया है, जो रसायनों के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं, जिससे कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के उपयोग में वृद्धि होती है। 
  • इसके अलावा, मिट्टी की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।    

भारत में GM फसलों की स्थिति:

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों की स्थिति जटिल और विकासशील है। वर्तमान में, बीटी कपास (Bt Cotton) भारत में व्यावसायिक खेती के लिए स्वीकृत एकमात्र GM फसल है। हालांकि, अन्य GM फसलों की स्वीकृति और उपयोग को लेकर विभिन्न स्तरों पर चर्चा और विवाद जारी हैं।    

GM सरसों (GM Mustard):
  • हाल ही में, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने GM सरसों की सिफारिशों को मंजूरी दी है। 
  • सरकार ने अक्टूबर 2022 में आयातित सरसों के तेल पर निर्भरता कम करने के लिए GM सरसों के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी दी थी।    
  • हालांकि, कार्यकर्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय जाने के बाद परीक्षण रोक दिए गए थे। 
  • कथित तौर पर GM सरसों पारंपरिक किस्मों की तुलना में 28% अधिक उपज देती है, हालांकि आलोचक गैर-स्वदेशी लक्षणों और स्वतंत्र परीक्षण के बारे में प्रश्न उठाते हैं।  
बीटी बैंगन (Bt Brinjal):
  • बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को लेकर भी विवाद जारी है। 
  • GM फसलों का विरोध पर्यावरण, स्वास्थ्य और व्यावसायिक आधार पर हो रहा है। 
  • आलोचकों का कहना है कि ये फसलें भारत की समृद्ध जैव विविध संपदा को नष्ट कर देंगी और लाखों किस्मों की फसलों की जगह ले लेंगी। 
अन्य GM फसलें:
  • चना, अरहर, मक्का और गन्ना जैसी अन्य फसलें विभिन्न शोध चरणों में हैं।
  • सरकार ने आयातित खाद्य तेलों पर निर्भरता कम करने के लिए GM सरसों के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी दी है। 
  • हालांकि, कार्यकर्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय जाने के बाद परीक्षण रोक दिए गए थे।  

विवाद और चिंताएँ:  

  • GM फसलों के विरोध में पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और व्यावसायिक चिंताएँ शामिल हैं। 
  • आलोचकों का मानना है कि ये फसलें जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकती हैं और किसानों की बीज कंपनियों पर निर्भरता बढ़ा सकती हैं। 
  • इसके अलावा, GMफसलों के दीर्घकालिक प्रभावों पर भी सवाल उठाए जाते हैं।    

 

स्रोत – डाउन टू अर्थ

 

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