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अर्जेंटीना का पेरिस समझौते से हटने पर विचार

अर्जेंटीना का पेरिस समझौते से हटने पर विचार

 

चर्चा में क्यों:- अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक वैश्विक संधि, पेरिस समझौते से देश के हटने के बारे में अटकलें लगाई हैं। अर्जेंटीना द्वारा COP29 जलवायु शिखर सम्मेलन से अपने वार्ताकारों को वापस बुलाने के निर्णय के बाद उठाए गए इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय चिंता को बढ़ा दिया है।       

UPSC पाठ्यक्रम:

प्रारंभिक परीक्षा:- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वर्तमान घटनाएँ  

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन II: महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, एजेंसियाँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश

 

अर्जेंटीना वापसी पर विचार क्यों कर रहा है?

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रपति माइली का रुख

राष्ट्रपति माइली, जो अपने जलवायु संदेह के लिए जाने जाते हैं, ने पहले जलवायु परिवर्तन को “समाजवादी झूठ” के रूप में खारिज कर दिया है। हालाँकि उनका प्रशासन जलवायु परिवर्तन को स्वीकार करता है, लेकिन यह इसे मानवीय गतिविधि के बजाय प्राकृतिक चक्रों के लिए जिम्मेदार ठहराता है। अर्जेंटीना के विदेश मंत्री गेरार्डो वर्थिन ने कहा है कि सरकार अपनी जलवायु रणनीति का पुनर्मूल्यांकन कर रही है, लेकिन उसने अंतिम निर्णय नहीं लिया है।

घरेलू चुनौतियाँ 

जीवाश्म ईंधन हित: अर्जेंटीना में शेल तेल और गैस के विशाल भंडार हैं, जो इसे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा शेल तेल धारक बनाता है। आलोचकों का तर्क है कि पेरिस समझौते की बाध्यताएँ इन क्षेत्रों में इसके आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।

राजनीतिक प्रतिरोध: संधि से हटने के लिए संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जो माइली की जलवायु नीतियों के प्रति घरेलू विरोध को देखते हुए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

पेरिस समझौता क्या है?

पेरिस समझौता एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे दिसंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) के दौरान अपनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति-पूर्व स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है, और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करना है।   

प्रमुख विशेषताएँ
  • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs): प्रत्येक देश अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों और योजनाओं को प्रस्तुत करता है, जिन्हें हर पांच वर्ष में अद्यतन और अधिक महत्वाकांक्षी बनाया जाता है। 
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: 2024 से, देशों को अपने जलवायु कार्रवाई और समर्थन के बारे में पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करना आवश्यक है, जिससे वैश्विक प्रगति का आकलन किया जा सके। 
  • वित्तीय सहायता: विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।   
2024 के आँकड़े और घटनाक्रम
  • NDC संश्लेषण रिपोर्ट 2024: सितंबर 2024 तक, 195 पार्टियों में से 180 ने अपने नए या अद्यतन NDCs प्रस्तुत किए, जो 2019 के कुल वैश्विक उत्सर्जन के 95% का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • COP29 सम्मेलन: नवंबर 2024 में बाकू, अज़रबैजान में आयोजित COP29 सम्मेलन में, जलवायु वित्तपोषण और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग के लिए नए नियमों पर सहमति बनी।  

पेरिस समझौते से संबंधित चुनौतियाँ:   

पेरिस समझौता, 2015 में स्थापित, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक वैश्विक पहल है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ सामने आई हैं।  

प्रमुख चुनौतियाँ
1. अपर्याप्त उत्सर्जन कटौती लक्ष्य
  • कई देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) पेरिस समझौते के 1.5°C तापमान वृद्धि सीमा के अनुरूप नहीं हैं। 
  • उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ के 2030 उत्सर्जन लक्ष्य इस सीमा से पीछे हैं। 

2. वित्तीय प्रतिबद्धताओं की कमी

  • विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्तपोषण में सहायता प्रदान करने की प्रतिबद्धता पूरी नहीं हो पाई है, जिससे विकासशील देशों के लिए जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो रही है।
3. कानूनी बाध्यता का अभाव
  • पेरिस समझौते में उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों के लिए कानूनी बाध्यता का अभाव है, जिससे देशों के लिए अपने लक्ष्यों को पूरा करने में लचीलापन बना रहता है। 
  • यह स्थिति समझौते की प्रभावशीलता को कम करती है।
4. जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता
  • कई देश अभी भी जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भर हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास बाधित हो रहे हैं। 
  • उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना के पास शेल गैस और तेल के बड़े भंडार हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं।
5. राजनीतिक अस्थिरता
  • कुछ देशों में राजनीतिक परिवर्तन और अस्थिरता के कारण जलवायु नीतियों में निरंतरता का अभाव है, जिससे पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति में कठिनाई होती है।
पेरिस समझौते से हटने की प्रक्रिया: 
पेरिस समझौता:   
  • पेरिस समझौता, 2015 में स्थापित, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक वैश्विक पहल है। 
  • इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करना है।
समझौते से हटने की प्रक्रिया

पेरिस समझौते का अनुच्छेद 28 किसी भी सदस्य देश को इससे हटने की प्रक्रिया का विवरण प्रदान करता है।

1. समयसीमा
  • तीन वर्ष की प्रतीक्षा अवधि: कोई भी देश समझौते के लागू होने की तारीख (4 नवंबर 2016) से तीन वर्ष बाद ही हटने की अधिसूचना दे सकता है। 
  • एक वर्ष की अधिसूचना अवधि: हटने की अधिसूचना देने के एक वर्ष बाद ही देश औपचारिक रूप से समझौते से बाहर माना जाएगा।  

2. अधिसूचना प्रक्रिया

  • लिखित अधिसूचना: देश को संयुक्त राष्ट्र महासचिव को लिखित रूप में अपनी हटने की इच्छा की सूचना देनी होती है।
  • प्रभावी तिथि: अधिसूचना की प्राप्ति के एक वर्ष बाद या अधिसूचना में निर्दिष्ट किसी बाद की तिथि पर हटना प्रभावी होता है।

ग्रीनहाउस गैसें क्या हैं?

ग्रीनहाउस गैसें वे वायुमंडलीय गैसें हैं जो पृथ्वी की सतह से विकिरित ऊष्मा को अवशोषित और पुनः उत्सर्जित करती हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ता है। यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस प्रभाव कहलाती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक तापमान बनाए रखने में मदद करती है।     

प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें
  1. कार्बन डाइऑक्साइड (CO): जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, प्राकृतिक गैस) के दहन, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होती है।
  2. मीथेन (CH): पशुपालन, चावल की खेती, लैंडफिल और जीवाश्म ईंधन के निष्कर्षण से उत्पन्न होती है।
  3. नाइट्रस ऑक्साइड (NO): कृषि गतिविधियों, विशेषकर उर्वरकों के उपयोग, और औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्सर्जित होती है।
  4. जल वाष्प (HO): सबसे प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली ग्रीनहाउस गैस है, जो प्राकृतिक रूप से वायुमंडल में मौजूद रहती है।
  5. फ्लोरीनेटेड गैसें: हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs), परफ्लोरोकार्बन (PFCs) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF) शामिल हैं, जो औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग होती हैं और उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता रखती हैं।      
2024 के आँकड़े और तथ्य
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, 2023 में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई। 
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO) का स्तर 420 भाग प्रति मिलियन (ppm) तक पहुँच गया, जो 2022 से 2.3 ppm अधिक है। 
  • यह लगातार 12वाँ वर्ष है जब CO की वार्षिक वृद्धि 2 ppm से अधिक रही है।  
  • मीथेन (CH) में भी 2020 से 2022 तक तीन वर्षों में सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई, विशेषकर प्राकृतिक आर्द्रभूमि से उत्सर्जन के कारण।    
  • नाइट्रस ऑक्साइड (NO) की सांद्रता में भी वृद्धि देखी गई है, जो कृषि और औद्योगिक गतिविधियों से संबंधित है। 

ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव

  • इन गैसों की बढ़ती सांद्रता से ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि होती है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ता है। 
  • यह जलवायु परिवर्तन, समुद्र स्तर में वृद्धि, और चरम मौसम घटनाओं में वृद्धि का कारण बनता है। 
  • WMO के अनुसार, 2023 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया, जो 2016 के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया। 
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव: 
  • ग्रीनहाउस गैसें (GHGs) जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO), मीथेन (CH), और नाइट्रस ऑक्साइड (NO) वायुमंडल में ऊष्मा को अवशोषित और पुनः उत्सर्जित करती हैं, जिससे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ता है। 
  • यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस प्रभाव कहलाती है, जो प्राकृतिक रूप से पृथ्वी को जीवन योग्य तापमान प्रदान करती है। 
  • हालाँकि, मानवीय गतिविधियों के कारण इन गैसों की सांद्रता में वृद्धि से ग्रीनहाउस प्रभाव तीव्र हो गया है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।   

2024 के आँकड़े

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, 2023 में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई। 
  • कार्बन डाइऑक्साइड (CO) का स्तर 420 भाग प्रति मिलियन (ppm) तक पहुँच गया, जो 2022 से 2.3 ppm अधिक है। 
  • यह लगातार 12वाँ वर्ष है जब CO की वार्षिक वृद्धि 2 ppm से अधिक रही है। 
  • मीथेन (CH) में भी 2020 से 2022 तक तीन वर्षों में सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई, विशेषकर प्राकृतिक आर्द्रभूमि से उत्सर्जन के कारण।  
  • नाइट्रस ऑक्साइड (NO) की सांद्रता में भी वृद्धि देखी गई है, जो कृषि और औद्योगिक गतिविधियों से संबंधित है। 

जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव

  1. वैश्विक तापमान में वृद्धि: GHGs की बढ़ती सांद्रता से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। WMO के अनुसार, 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया, जो 2016 के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया। 
  2. समुद्र स्तर में वृद्धि: ग्लेशियरों और ध्रुवीय बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और कटाव की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
  3. चरम मौसम घटनाएँ: तापमान में वृद्धि से लू, भारी वर्षा, सूखा, और तूफानों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है, जिससे कृषि, जल संसाधन, और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  4. पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है, जिससे जैव विविधता में कमी, प्रजातियों का विलुप्त होना, और खाद्य श्रृंखला में परिवर्तन हो रहा है। 

ट्रम्प प्रशासन के दौरान अमेरिका का पेरिस समझौते से हटना: कारण और प्रभाव 

पेरिस समझौता, 2015 में स्थापित, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक वैश्विक पहल है। अमेरिका ने 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में 2017 में इससे हटने की घोषणा की गई।

अमेरिका के हटने के प्रमुख कारण
  1. आर्थिक चिंताएँ: राष्ट्रपति ट्रम्प ने दावा किया कि पेरिस समझौता अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है। उनके अनुसार, इस समझौते के तहत अमेरिका को अपने उद्योगों और श्रमिकों के हितों के खिलाफ कठोर कदम उठाने पड़ते, जिससे नौकरियों का नुकसान होता। 
  2. अन्य देशों के प्रति असंतुलन: ट्रम्प का मानना था कि यह समझौता भारत और चीन जैसे बड़े उत्सर्जक देशों को उत्सर्जन जारी रखने का फ्री पास प्रदान करता है, जबकि अमेरिका पर अधिक दबाव डालता है। 
  3. जलवायु परिवर्तन पर संदेह: ट्रम्प ने कई मौकों पर जलवायु परिवर्तन और इसके लिए मानवीय गतिविधियों के उत्तरदायी होने को अस्वीकार किया है। 
प्रभाव
  • वैश्विक प्रतिक्रिया: अमेरिका के इस निर्णय पर संयुक्त राष्ट्र और इसके कुछ सदस्यों ने निराशा व्यक्त की। 
  • अमेरिकी उद्योगों पर प्रभाव: ट्रम्प प्रशासन ने तर्क दिया कि इस निर्णय से अमेरिकी उद्योगों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिलेगी, विशेषकर कोयला और तेल उद्योगों में।

वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की स्थिति:

पेरिस समझौते का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति-पूर्व स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है, और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करना है। यह सीमा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को कम किया जा सकता है। 

2024 में स्थिति
  • 2024 में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अपनी ‘स्टेट ऑफ क्लाइमेट 2024’ रिपोर्ट में बताया कि जनवरी से सितंबर 2024 तक वैश्विक औसत सतही वायु तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.54°C अधिक था। 
  • यह आंशिक रूप से मजबूत अल नीनो घटना के कारण था।  
  • इससे संकेत मिलता है कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष हो सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त, यूरोपीय कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के अनुसार, 2024 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.55°C अधिक रहने की संभावना है, जो पिछले रिकॉर्ड को तोड़ सकता है।  
चुनौतियाँ
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि: मानवीय गतिविधियों, विशेषकर जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण, ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में निरंतर वृद्धि हो रही है, जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है।
  • अल नीनो प्रभाव: अल नीनो जैसी प्राकृतिक घटनाएँ तापमान में अस्थायी वृद्धि का कारण बनती हैं, जिससे 1.5°C सीमा को पार करने का जोखिम बढ़ जाता है।
  • नीतिगत अंतराल: कई देशों की वर्तमान नीतियाँ और प्रतिबद्धताएँ 1.5°C लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपर्याप्त हैं, जिससे दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ (ONOS)

‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ (ONOS)

 

चर्चा में क्यों: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 नवंबर, 2024 को ‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ (ONOS) योजना को मंजूरी दी।

UPSC पाठ्यक्रम:

प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र की पहलआदि।

मुख्य परीक्षा:  सामान्य अध्ययन II: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) योजना क्या है?

वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) योजना भारत सरकार द्वारा संचालित एक केंद्रीय क्षेत्र की पहल है, जिसे भारत भर में सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) और अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रयोगशालाओं के लिए उच्च प्रभाव वाली विद्वानों की पत्रिकाओं और शोध लेखों तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

पृष्ठभूमि और उत्पत्ति

यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 से उत्पन्न, जिसने शिक्षा और राष्ट्रीय विकास में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए अनुसंधान को आधार के रूप में महत्व दिया।

NEP 2020 का मुख्य विजन:

अपने विशाल क्षमता और कौशल का भंडार को अधिकतम करके भारत को एक अग्रणी ज्ञान समाज में बदलना।

नवाचार और ज्ञान सृजन में वैश्विक लीडर बनने के लिए विभिन्न विषयों में अनुसंधान क्षमताओं और आउटपुट का महत्वपूर्ण विस्तार।

इसकी घोषणा और कार्यान्वयन कब हुआ?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 नवंबर, 2024 को ONOS योजना को मंजूरी दी।

यह योजना 1 जनवरी, 2025 से लागू होगी, जो तीन वर्षों (2025-2027) के लिए पत्रिकाओं तक पहुँच प्रदान करेगी। 

‘वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन’ के उद्देश्य 

ONOS का उद्देश्य सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) और अनुसंधान और विकास (R&D) प्रयोगशालाओं को विद्वानों की पत्रिकाओं और शोध लेखों की एक विशाल श्रृंखला तक केंद्रीकृत पहुँच प्रदान करना है।

छात्रों, शोधकर्ताओं और संकाय को वैश्विक संसाधनों तक पहुँचने और नवाचार को बढ़ावा देने में सक्षम बनाना।

प्रमुख विशेषताएं:  

राष्ट्रीय नीतियों के साथ संरेखण: 

यह पहल विकसित भारत@2047, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) के लक्ष्यों के साथ संरेखित है।

यह रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों का समर्थन करता है।

कार्यान्वयन संरचना

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तहत एक स्वायत्त अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र, सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क (INFLIBNET), ONOS के समन्वय की देखरेख करेगा, जिससे शोध सामग्री तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित होगी।

सब्सक्राइब किए गए जर्नल तक पहुँचने के लिए संस्थानों को इस प्लेटफ़ॉर्म पर पंजीकरण करना होगा।

संस्थागत कवरेज: 

इस योजना में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित लगभग 6,300 संस्थान शामिल हैं, जिनमें विश्वविद्यालय, कॉलेज और R&D प्रयोगशालाएँ शामिल हैं।

डिजिटल पहुँच: 

शोध सामग्री तक आसान और व्यापक पहुँच की सुविधा के लिए एक समर्पित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म स्थापित किया जाएगा।

जागरूकता अभियान:

केंद्र और राज्य सरकारें संस्थानों के बीच अधिकतम उपयोग और जागरूकता सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाएँगी।

प्रावधान और पात्रता :

सभी सरकारी संचालित उच्च शिक्षा संस्थान और R&D संस्थान ONOS योजना में भाग लेने के लिए पात्र हैं।

यह योजना संस्थानों को 30 अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों की 13,000 पत्रिकाओं तक निःशुल्क पहुँच प्रदान करेगी।

वित्तीय आवंटन  

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2025 से 2027 की अवधि के लिए 6,000 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है, जिसमें प्रकाशकों को भुगतान सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क (INFLIBNET) द्वारा केंद्रीय रूप से प्रबंधित किया जाएगा।

केंद्रीकृत वार्ता के माध्यम से, सदस्यता लागत 4,000 करोड़ रुपये/वर्ष से घटाकर 1,800 करोड़ रुपये/वर्ष कर दी गई।

पत्रिकाओं तक पहुँचते हैं:

लाइब्रेरी कंसोर्टिया: 

लगभग 2,500 उच्च शिक्षा संस्थान 10 अलग-अलग लाइब्रेरी कंसोर्टिया के माध्यम से लगभग 8,100 पत्रिकाओं तक पहुँचते हैं, जिनमें से प्रत्येक का प्रबंधन विभिन्न मंत्रालयों द्वारा किया जाता है। 

उदाहरण के लिए, INFLIBNET केंद्र UGC-Infonet डिजिटल लाइब्रेरी कंसोर्टियम की देखरेख करता है, जो चयनित विद्वानों की इलेक्ट्रॉनिक पत्रिकाओं और डेटाबेस तक पहुँच प्रदान करता है।

व्यक्तिगत सदस्यता: 

कंसोर्टिया से परे, कई संस्थान स्वतंत्र रूप से पत्रिकाओं की सदस्यता लेते हैं, जिससे सदस्यता ओवरलैप होती है और लागत बढ़ जाती है।

भविष्य की योजनाएँ: 

अगले चरण में शोध प्रकाशन से जुड़ी लागतों को और कम करने के लिए जर्नल प्रकाशकों के साथ लेख प्रसंस्करण शुल्क (APC) पर बातचीत करना शामिल है।

रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF)

रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत स्थापित एक महत्वपूर्ण पहल है। 

यह भारत के उच्च शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है।

गठन: संसद द्वारा पारित ANRF अधिनियम, 2023 के माध्यम से स्थापित।

परिचालन: 5 फरवरी, 2024 को लागू हुआ।

उद्देश्य

विभिन्न विषयों में अनुसंधान और नवाचार पहलों के लिए रणनीतिक दिशा प्रदान करना।

प्राकृतिक विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, मानविकी और सामाजिक विज्ञान सहित वैज्ञानिक और अंतःविषय अनुसंधान को मजबूत करना।

भारतीय विश्वविद्यालयोंकॉलेजों और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों में अनुसंधान क्षमता को बढ़ाना।

अनुसंधान के प्रभाव को अधिकतम करने के लिए उद्योग, शिक्षा और सरकार के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना।

शोध और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत@2047 जैसे राष्ट्रीय मिशनों का समर्थन करें।

मुख्य बिंदु

रिसर्च नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) भारत के शोध प्रयासों और नवाचार नीतियों का मार्गदर्शन करने वाले शीर्ष-स्तरीय संगठन के रूप में कार्य करता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा प्रदान किए गए नेतृत्व के साथ, इसके संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण बजट आवंटित किया गया है।

शोध परिणामों को बढ़ाने और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

फोकस क्षेत्र:

वैज्ञानिक अनुसंधान: स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्रौद्योगिकी।

नवाचार और उद्यमिता: शोध निष्कर्षों का व्यावसायीकरण।

क्षमता निर्माण: उच्च गुणवत्ता वाले शोध के लिए बुनियादी ढाँचे और संसाधनों का विकास करना।

हाल की पहल :

पीएम अर्ली करियर रिसर्च ग्रांट: शुरुआती करियर शोधकर्ताओं के लिए फंडिंग।

महा-ईवी मिशन: आयात निर्भरता को कम करने के लिए घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक विकसित करना।

 

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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6 जुलाई का इतिहास 7 जून का इतिहास 9 जून का इतिहास Ayushman Bharat Digital Mission (ABDM) Benefits of Organic Farming CAG CAG के संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान Challenges Facing the Health Sector CHINA MOON MISSION CITES Current status of organic farming in India Government Initiatives Related to Healthcare Government initiatives to promote organic farming Government Spending on Healthcare H5N2 H5N2 बर्ड फ्लू H5N2 बर्ड फ्लू का संक्रमण H5N2 बर्ड फ्लू क्या है? Health in the Indian Constitution Health infrastructure in India Healthcare Sector in India importance of organic farming INDIA MOON MISSION ISRO IUCN Living Planet Index - LPI Living Planet Report MOON MISSION NASA MISSION National Biodiversity Authority National Green Tribunal NGT organic farming organic farming in India State Biodiversity Boards (SBBs) Today History Traffic UNEP और भारत World Health Day World Health Day 2024 World Health Day 2024 theme World Wide Fund for Nature WWF अनुच्छेद 15 अनुच्छेद 16: समानता का अधिकार अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अभय मुद्रा अभय मुद्रा क्या है? आज का इतिहास ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) ओमिक्स के प्रकार चाइल्ड केयर लीव चुनाव आयोग चुनाव आयोग की शक्तियाँ और कार्य चुनाव आयोग की संरचना एवं कार्यकाल चुनाव आयोग से संबंधित अनुच्छेद जाति-विरोधी आंदोलन और बौद्ध धर्म का विनियोग जैविक खेती का उद्देश्य जैविक खेती के महत्व जैविक खेती के लाभ जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहल ट्रैफिक का महत्व ट्रैफिक का मिशन धर्मचक्र मुद्रा धीरूभाई अंबानी नकद आरक्षित अनुपात (CRR) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बैंक दर बौद्ध धर्म और भारतीय समाज पर इसका प्रभाव बौद्ध धर्म में मुद्राएँ भारत और यूरोपीय संघ के बीच सहयोग के क्षेत्र भारत के लिए यूरोप का महत्व भारत में जैविक खेती भारत में बौद्ध धर्म का उद्भव और प्रसार भारत में महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा की गई पहल भारतीय रिज़र्व बैंक और उसके मौद्रिक नीति उपकरण भारतीय संविधान के तहत कार्यरत माताओं के संविधानिक अधिकार मनुष्यों में H5N2 के लक्षण मल्टी-ओमिक्स मल्टी-ओमिक्स के अनुप्रयोग मल्टी-ओमिक्स में चुनौतियां :- मिनामाता सम्मेलन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल मोटे अनाज मोटे अनाज का महत्व मोटे अनाज की खेती और खपत बढ़ाने में बाधाएँ मौद्रिक नीति मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण मौद्रिक नीति के मात्रात्मक उपकरण यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति यूरोपीय संघ यूरोपीय संघ का इतिहास यूरोपीय संघ के सदस्य देश यूरोपीय संघ में चुनाव यूरोपीय संसद यूरोपीय संसद की संरचना और चुनाव राज्य जैव विविधता बोर्ड्स (SBBs) राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की संरचना राष्ट्रीय मोटा अनाज मिशन (NMM): राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) रिवर्स रेपो रेट रेपो दर लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम विश्व जुनोसिस डे वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) संज्ञान ऐप संज्ञान ऐप की मुख्य विशेषताएँ संज्ञान ऐप क्या है संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) संवैधानिक अधिकार सहकारिता दिवस स्टॉकहोम सम्मेलन
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