पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2025 |
चर्चा में क्यों:- भारत पर्यावरण स्थिति रिपोर्ट 2025 आधिकारिक तौर पर 26 फरवरी, 2025 को राजस्थान के निमली में आयोजित अनिल अग्रवाल संवाद में जारी की गई। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) और डाउन टू अर्थ (DTE) पत्रिका द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाने वाली यह रिपोर्ट देश के सामने आने वाले प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों का व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं
‘भारत की पर्यावरणीय स्थिति 2025’ रिपोर्ट में देश के समक्ष उपस्थित प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों और उनके समाधान के लिए उठाए गए कदमों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस रिपोर्ट में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं:
1. प्लास्टिक
- प्लास्टिक प्रदूषण वर्तमान में एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बन चुका है।
- रिपोर्ट में प्लास्टिक कचरे के उत्पादन, उसके प्रबंधन, और पुनर्चक्रण की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण किया गया है।
- इसके साथ ही, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध और वैकल्पिक सामग्रियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई नीतियों का भी उल्लेख है।
2. जैव विविधता
- भारत की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों का विवरण इस खंड में दिया गया है।
- रिपोर्ट में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि, वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना, और समुदाय आधारित संरक्षण प्रयासों की चर्चा की गई है।
- उदाहरण के लिए, संरक्षित क्षेत्रों की संख्या 2014 में 745 से बढ़कर 2025 में 1,022 हो गई है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.43% कवर करती है।
3. स्वास्थ्य और रोगाणुरोधी प्रतिरोध
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) एक उभरती हुई स्वास्थ्य चुनौती है।
- रिपोर्ट में इस समस्या के प्रसार, इसके कारणों, और इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों और जागरूकता अभियानों का विश्लेषण किया गया है।
4. जलवायु परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उनसे निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदमों का विस्तृत विवरण इस खंड में है।
- रिपोर्ट में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई प्रगति, जैसे कि 2024 में 28 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का संवर्धन, का उल्लेख है।
- इसके साथ ही, 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की भी चर्चा की गई है।
5. नदियाँ और जल संसाधन
- रिपोर्ट में देश की नदियों की वर्तमान स्थिति, जल प्रदूषण के स्रोत, और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे अभियानों का विश्लेषण किया गया है।
- इसके साथ ही, आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों, जैसे कि रामसर स्थलों की संख्या में वृद्धि, का भी उल्लेख है।
6. गर्मी और वायु प्रदूषण
- वायु प्रदूषण और बढ़ती गर्मी की समस्याओं पर रिपोर्ट में गहन चर्चा की गई है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत 2025-26 तक पार्टिकुलेट मैटर में 40% तक की कमी लाने के लक्ष्य और अब तक की प्रगति का विवरण दिया गया है।
7. अपशिष्ट प्रबंधन और औद्योगिक प्रदूषण
- औद्योगिक कचरे और अन्य ठोस अपशिष्टों के प्रबंधन की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ, और समाधान के लिए अपनाई जा रही रणनीतियों का विश्लेषण इस खंड में किया गया है।
- रिपोर्ट में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नवीन तकनीकों, नीतियों, और समुदाय की भागीदारी पर जोर दिया गया है।
‘भारत की पर्यावरणीय स्थिति 2025’ रिपोर्ट देश के समक्ष उपस्थित पर्यावरणीय चुनौतियों का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है और उनके समाधान के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देती है। यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, और आम जनता के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
भारत की पर्यावरणीय स्थिति 2025:
1. भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष
- 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी को 40 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
- इस त्रासदी में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था, जिससे हजारों लोग मारे गए और कई गंभीर रूप से प्रभावित हुए।
- आज भी, प्रभावित क्षेत्रों में जहरीले कचरे का निपटान एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
- हाल ही में, इस कचरे को सुरक्षित रूप से नष्ट करने के प्रयास तेज़ हुए हैं।
2. भारत का 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा विजन
- भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
- 2024 में, देश ने 28 गीगावाट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी, जिसमें सौर ऊर्जा का हिस्सा 70% था।
- हालांकि, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वार्षिक सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में दोगुनी वृद्धि की आवश्यकता होगी।
3. ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना
- ग्रेट निकोबार द्वीप पर एक प्रमुख विकास परियोजना प्रस्तावित है, जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह, हवाई अड्डा, और अन्य बुनियादी ढांचा शामिल हैं।
- हालांकि, इस परियोजना से द्वीप की समृद्ध जैव विविधता और स्थानीय समुदायों पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
4. थार रेगिस्तान पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन के कारण थार रेगिस्तान में तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, और मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया में तेजी देखी जा रही है।
- इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
5. भारत में पलायन और विस्थापन
- पर्यावरणीय कारकों, जैसे बाढ़, सूखा, और समुद्र स्तर में वृद्धि, के कारण भारत में आंतरिक पलायन और विस्थापन की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- इससे शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या दबाव और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
6. पश्चिमी घाटों के लिए पर्यावरणीय खतरे
- पश्चिमी घाट, जो जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, वनों की कटाई, अवैध खनन, और अनियंत्रित शहरीकरण जैसी गतिविधियों के कारण गंभीर पर्यावरणीय खतरों का सामना कर रहा है।
- इन खतरों से निपटने के लिए सख्त संरक्षण उपायों और सतत विकास नीतियों की आवश्यकता है।
पैनल चर्चा: जलवायु-जोखिम वाले, वि-वैश्वीकृत विश्व में पर्यावरण-विरोधी
1. भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियाँ
- मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बारे में बात की, उन्होंने कहा कि यह बेहतर के लिए विकसित नहीं हो रहा है।
- उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत को अपने पर्यावरणीय निर्णयों में विश्वसनीयता बनानी चाहिए, ख़ासकर ऐसे समय में जब दुनिया वैश्विक संकटों से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है।
2. वैश्विक संघर्ष और पर्यावरण पर उनका प्रभाव
- अमिताभ कांत ने वैश्विक स्थिरता को प्रभावित करने वाले कई कारकों पर प्रकाश डाला:
- लंबे समय तक चलने वाला यूक्रेन युद्ध, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रहा है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के यूरोपीय स्थिरता मॉडल का पतन।
- AI और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ, जो परिवर्तनकारी होने के साथ-साथ संघर्षों को भी बढ़ा सकती हैं।
भारत के पर्यावरण शासन में चुनौतियाँ
1. नगर प्रशासन संकट
- कांत ने नगर प्रशासन के पतन की आलोचना करते हुए कहा कि स्थानीय निकाय प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी नियोजन में विफल रहे हैं।
- उन्होंने बताया कि वित्तीय संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद, वास्तविक मुद्दा शासन है, न कि वित्तपोषण।
2. नागरिक भागीदारी और अपशिष्ट पृथक्करण
- कांत के अनुसार, प्रमुख विफलताओं में से एक अपशिष्ट प्रबंधन में नागरिक भागीदारी की कमी है, क्योंकि कई लोग नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट को ठीक से अलग भी नहीं करते हैं।
- जागरूकता और भागीदारी की इस कमी ने शहरों में पर्यावरणीय चुनौतियों को और बढ़ा दिया है।
3. मजबूत स्थानीय शासन की आवश्यकता
- राज लिब्रहान ने जोर देकर कहा कि भारत की स्थानीय सरकार संस्थाएँ या तो मौजूद नहीं हैं या बहुत कम प्रदर्शन कर रही हैं।
- उन्होंने तर्क दिया कि जमीनी स्तर पर पर्यावरणीय गिरावट को संबोधित करने के लिए स्थानीय शासन संरचनाओं को सशक्त बनाना आवश्यक है।
आगे की राह
नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश की आवश्यकता
- भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
- हालांकि, वर्तमान निवेश दर इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपर्याप्त है।
- 2024 में, देश ने लगभग 28 गीगावाट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी, लेकिन इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए अगले पांच वर्षों में वार्षिक क्षमता वृद्धि को दोगुना करने की आवश्यकता है।
- इसके लिए, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश को बढ़ाना और विदेशी वित्तपोषण तक पहुंच सुनिश्चित करना आवश्यक है।
कार्बन बाजारों का विकास
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन बाजार एक प्रभावी साधन हो सकते हैं।
- ‘प्रकृति 2025’ सम्मेलन में विशेषज्ञों ने वैश्विक कार्बन बाजार के वर्तमान रुझानों, चुनौतियों और भविष्य की दिशाओं पर चर्चा की।
- इसमें कार्बन क्रेडिट, ऑफसेट तंत्र, और कार्बन बाजार की गतिशीलता जैसे विषय शामिल थे।
- भारत में प्रभावी कार्बन बाजारों के विकास के लिए सुदृढ़ नीतियों और बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।
जैव विविधता संरक्षण और वृक्षारोपण अभियान
- भारत ने ‘एक पेड़ मां के नाम’ पहल के माध्यम से बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य 2025 तक 140 करोड़ पेड़ लगाना है।
- जनवरी 2025 तक, 109 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं, जिससे देश का हरित आवरण बढ़ा है और कार्बन अवशोषण में महत्वपूर्ण योगदान मिला है।
- इसके अलावा, संरक्षित क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि और आर्द्रभूमि संरक्षण के प्रयासों से जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अनुकूलन रणनीतियाँ
- जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है।
- ‘जलवायु जोखिम सूचकांक 2025’ के अनुसार, 1993 से 2022 के बीच भारत में 80,000 से अधिक मौतें चरम मौसम की घटनाओं के कारण हुई हैं।
- इन चुनौतियों से निपटने के लिए, सतत शहरी विकास, आपदा प्रबंधन, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने जैसी अनुकूलन रणनीतियाँ आवश्यक हैं।
- निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- ‘भारत की पर्यावरणीय स्थिति 2025’ रिपोर्ट में बताया गया है कि 2024 में भारत ने 28 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का संवर्धन किया।
- रिपोर्ट के अनुसार, 2025-26 तक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत पार्टिकुलेट मैटर में 40% तक की कमी लाने का लक्ष्य है।
- रिपोर्ट में उल्लेख है कि 2025 में संरक्षित क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 1,022 हो गई है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.43% कवर करती है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3