राष्ट्रमंडल का किगाली सम्मेलन
05 Jul, 2022
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में बरसों से निष्क्रिय पड़े राष्ट्रमंडल संगठन में नई जान फूंकने की कवायद के तहत इसके 54 सदस्य देश रवांडा की राजधानी किगाली में मिले। विस्तृत चर्चा हुई, लेकिन आगे की प्रगति की राह आसान नहीं दिखी।
मुख्य बिंदु :-
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विशेषज्ञों के अनुसार, इस बारे में प्रगति तभी होगी, जब कुछ बुनियादी बाधाओं को दूर किया जाएगा। हाल में हुए इस सम्मेलन में भारत की अहम मौजूदगी रही। भारत की ओर से विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रतिनिधित्व किया।
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वर्ष 2007 के बाद पहली बार इस संगठन के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक अफ्रीका में हो रही है। रवांडा कभी ब्रिटेन के अधीन नहीं रहा, लेकिन 2009 में इसने खुद ही राष्ट्रमंडल की सदस्यता ग्रहण की थी।
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एशिया के अलावा अफ्रीका दूसरा महाद्वीप है, जिसके सदियों पहले मानवीय और आर्थिक शोषण से ब्रिटिश साम्राज्य इतनी बड़ी ताकत हासिल कर सका था। वजह कोई भी हो, हिंद-प्रशांत के जमाने में किसी को तो अफ्रीका की याद आई।
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अपने विस्तार क्षेत्र के हिसाब से राष्ट्रमंडल एक प्रभावशाली तस्वीर पेश करता है। दुनिया की एक तिहाई आबादी इसके सदस्य देशों की है।
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ये देश- कैरेबियन और अमेरिका (13), अफ्रीका (19), एशिया (8), यूरोप (3) और पैसिफिक (11) में फैले हुए हैं।
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यही नहीं, आज जब दुनिया में बहुपक्षवाद का जोर कम हो रहा है तो ऐसे में रवांडा और मोजाम्बिक का सदस्यता लेना और पूर्व फ्रांस-शासित देशों - गैबोन और टोगो का किगाली शिखर भेंट में सदस्यता की कोशिश एक दिलचस्प बात है।
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रवांडा को शिखर भेंट की मेजबानी करने देने का निर्णय राष्ट्रमंडल के मानवाधिकारों और लोकतंत्र को लेकर प्रतिबद्धता पर निश्चित रूप से सवाल खड़े करता है। रवांडा को लेकर ब्रिटेन में हाल में उठे विवाद भी इस बात पर प्रकाश डालते हैं।
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रवांडा ब्रिटेन के अवांछित प्रवासियों का शरणस्थल रहा हैजिसकी ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर आलोचना हो रही है। हाल में ब्रिटेन और रवांडा के बीच एक डील हुई है जिसके तहत शरण मांगने वालों को रवांडा भेजा जाएगा। ब्रिटेन में घुसने की उन्हें इजाजत नहीं होगी। इससे राष्ट्रमंडल के नियमबद्ध और मूल्यपरक संगठन होने पर भी आंच आती है।
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अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रमंडल ब्रिटेन के इर्द गिर्द ही बुना गया है। यह स्थिति अभी तक वैसी ही है।
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आज जब ब्रेक्जिट से निकल कर ब्रिटेन अपने लिए नई जमीन तलाश रहा है, तो ऐसे में राष्ट्रमंडल की प्रासंगिकता बढ़ गई है। शायद यही वजह है कि ब्रिटेन राष्ट्रमंडल देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की कोशिश में है।
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इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भारत, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, सिंगापुर, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देशों की वजह से आज भी राष्ट्रमंडल विश्व राजनीति में एक अहम भूमिका निभा सकता है।
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लेकिन पारस्परिक सहयोग की बातें बेमानी लगती हैं। खास तौर पर तब, जब ब्रिटेन संगठन का नेतृत्व आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका या भारत को देने का इच्छुक नहीं है।
Source – IE