अनामलाई टाइगर रिज़र्व

Topic : अनामलाई टाइगर रिज़र्व

 

चर्चा में क्यों :

  • तमिलनाडु वन विभाग और AIWC (Advanced Institute for Wildlife Conservation) के एक अध्ययन में आनमलाई टाइगर रिज़र्व (ATR) के जंगलों में कम-से-कम आठ जुगनू प्रजातियाँ (fireflies) दर्ज की गईं। 
  • यह 10-महीने का सर्वे मई 2024–मार्च 2025 तक ATR की 10 स्थलों में चला। 
    • पहचानी गई प्रजातियों में Abscondita perplexa, Ab. terminalis, Asymmetricata humeralis, Curtos, Lamprigera (sp.), Pyrocoelia (sp.)  आदि प्रजाति शामिल हैं।

UPSC पाठ्यक्रम:

  • प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व की समसामयिक घटनाएँ।
  • मुख्य परीक्षा:  सामान्य अध्ययन III: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरण प्रभाव आकलन

अनामलाई टाइगर रिज़र्व के बारे में

  •  अनामलाई टाइगर रिज़र्व एक संरक्षित वन क्षेत्र है, जिसे बाघों और अन्य वन्यजीवों के संरक्षण के लिए स्थापित किया गया है। यह तमिलनाडु राज्य के पश्चिमी घाट (Western Ghats) में स्थित है और जैव विविधता से भरपूर पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1976: इस क्षेत्र को ‘इंदिरा गांधी वन्यजीव अभयारण्य’ घोषित किया गया था।
  • 1989: इसमें एक राष्ट्रीय उद्यान जोड़ा गया, जिससे इसकी कानूनी सुरक्षा बढ़ गई।
  • 2007: इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
  • नाम परिवर्तन: 15 फ़रवरी 2008 को इसका नाम बदलकर अनामलाई टाइगर रिज़र्व कर दिया गया, जो अनामलाई पर्वतमाला (Anamalai Hills) से प्रेरित है।

भौगोलिक स्थिति और पहचान 

  • स्थान: तमिलनाडु राज्य में स्थित, अनामलाई टाइगर रिज़र्व कोयंबटूर और तिरुप्पुर जिलों के पोल्लाची, वलपराई और उदुमलपेट तालुकों में फैला हुआ है।

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सीमावर्ती संरक्षित क्षेत्र:

  • पूर्व में: परंबिकुलम टाइगर रिज़र्व
  • दक्षिण-पश्चिम में: एराविकुलम नेशनल पार्क और चिन्नार वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी
  • पश्चिम में: नेम्मारा, वाझाचल, मलयत्तूर और मरायूर रिज़र्व फ़ॉरेस्ट्स (केरल)

बायोस्फीयर रिज़र्व:

  • अनामलाई टाइगर रिज़र्व नीलगिरी बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है, जो भारत का पहला और सबसे बड़ा बायोस्फीयर रिज़र्व है, और यह तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों में फैला हुआ है।

नदी प्रणालियाँ:

  • यह रिज़र्व अलीयर, अमरावती और निरार नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है, जो तमिलनाडु के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। 

स्थलाकृति: 

  • अनामलाई टाइगर रिज़र्व की स्थलाकृति विविध है, जिसमें ऊँचे पहाड़, गहरी घाटियाँ और घने वन शामिल हैं। यह क्षेत्र पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है, जिसकी ऊँचाई लगभग 340 मीटर से लेकर 2,500 मीटर तक है। 

जलवायु: 

  • यहाँ उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है, जिसमें तापमान और वर्षा में ऊँचाई के अनुसार विविधता होती है। वार्षिक वर्षा पूर्वी भागों में लगभग 800 मिमी से लेकर पश्चिमी भागों में 3,500 मिमी तक होती है। 

स्थापना वर्ष और IUCN श्रेणी

  • स्थापना वर्ष: अनामलाई टाइगर रिज़र्व को 2007 में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया था। 
  • यह रिज़र्व IUCN की श्रेणी IV (प्रजाति/आवास प्रबंधन क्षेत्र) में आता है।

वनस्पति (Flora)

प्रमुख वन प्रकार

  • उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन: इन वनों में Hopea parviflora, Mesua ferrea, Calophyllum tomentosum, और Cullenia exarillata जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
  • शोला-घासभूमि परिसर: यह उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां शोला वन और घासभूमि एक साथ मिलकर अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं।
  • अन्य वन प्रकार: आर्द्र पर्णपाती, शुष्क पर्णपाती, शुष्क कांटेदार झाड़ी वन, और दलदली क्षेत्र भी यहां पाए जाते हैं।

महत्वपूर्ण पौध प्रजातियाँ

  • आम, कटहल, केले, अदरक, हल्दी, काली मिर्च, और इलायची के जंगली रिश्तेदार यहां पाए जाते हैं।

जीव-जंतु (Fauna)

प्रमुख स्तनधारी

  • बाघ (Bengal Tiger): यह आरक्षित क्षेत्र बाघों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
  • एशियाई हाथी (Asiatic Elephant): ATR में हाथियों की स्थायी आबादी है।
  • गौर (Gaur): भारतीय बाइसन के रूप में भी जाना जाता है।
  • शेर-पूंछ मकाक (Lion-tailed Macaque): पश्चिमी घाटों के लिए स्थानिक और संकटग्रस्त प्रजाति।
  • नीलगिरी तहर (Nilgiri Tahr): पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला संकटग्रस्त पर्वतीय बकरी।

पक्षी विविधता

  • पक्षियों की प्रजातियाँ: लगभग 250 प्रजातियाँ, जिनमें से 16 पश्चिमी घाटों के लिए स्थानिक हैं।
  • महत्वपूर्ण पक्षी: ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल, नीलगिरी फ्लाईकैचर, मलाबार ट्रोगन, और व्हाइट-चीक्ड बार्बेट।

सरीसृप और उभयचर

  • सरीसृप: भारतीय अजगर, किंग कोबरा, मलाबार पिट वाइपर, और नीलगिरी कीलबैक।
  • उभयचर: एनामलाई फ्लाइंग फ्रॉग, पर्पल फ्रॉग, और विभिन्न बुश फ्रॉग प्रजातियाँ।

अनामलाई टाइगर रिज़र्व: प्रशासनिक और कानूनी ढांचा

  • अनामलाई टाइगर रिजर्व का प्रबंधन तमिलनाडु सरकार के पर्यावरण व वन विभाग  द्वारा किया जाता है। इसमें दो वन विभाग (तिरुप्पुर और पोल्लाची) और छह वन रेंज हैं: अमरावती, उदुमलपेट, पोल्लाची, उलंडी, वालपारई और मानंबोली।
  • प्रत्येक टाइगर रिजर्व में एक फील्ड डायरेक्टर नियुक्त होता है जो रिजर्व का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी होता है। फील्ड डायरेक्टर के अधीन रेंज अधिकारियों और अन्य वन कर्मचारियों की टीम काम करती है।

प्रोजेक्ट टाइगर अधिसूचना

  • अनामलाई को वर्ष 2007 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। (तमिलनाडु सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत यह अधिसूचना जारी की थी।)
  • रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1479.87 वर्गकिमी है, जिसमें कोर क्षेत्र 958.59 वर्गकिमी और बफर क्षेत्र 521.28 वर्गकिमी शामिल हैं।

कानूनी आधार

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार एक या अधिक क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित कर सकती है। अनामलाई भी इसी अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्र घोषित है।
  • भारतीय वन अधिनियम, 1927: यह अधिनियम वन विभाग को वन क्षेत्र के प्रबंधन और संरक्षण के लिए सामान्य शक्तियाँ प्रदान करता है। अनामलाई के वन क्षेत्र में इस अधिनियम की धारा-राज्य वनपाल द्वारा लागू की जाती है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: यह अधिनियम केंद्रीय सरकार को इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) जैसी संरक्षित क्षेत्रों की अधिसूचना जारी करने की शक्ति देता है। ESZ के अंतर्गत किन्हीं गतिविधियों पर रोक-नियमन लागू होते हैं।

इको-सेंसिटिव जोन (ESZ)

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दिसंबर 2024 में अनामलाई टाइगर रिजर्व के चारों ओर 0–10 किमी त्रिज्या में इको-सेंसिटिव जोन का मसौदा अधिसूचना जारी किया।
  • प्रस्तावित ESZ का क्षेत्रफल 767.57 वर्गकिमी है और इसमें कोयंबत्तूर, तिरुप्पुर व डिंडीगुल जिलों की कुल 183 गाँवें (Valparai समेत) शामिल हैं।
  • ESZ में नई भारी उद्योग, होटल-रिसॉर्ट तथा अन्य विनाशक गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है और रीयल एस्टेट निर्माण व वन कटाई को कड़ी शर्तों के अधीन किया जाता है। यह पर्यावरण अधिनियम 1986 के तहत निर्धारित किया गया है।

सामुदायिक वन अधिकार

  • अनामलाई क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय जैसे इरुलर, कादर, मलासर आदि को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत व्यक्तिगत वन अधिकार (Individual Forest Rights) प्राप्त हैं। इन अधिकारों से उन्हें अपनी पारंपरिक स्थलों पर खेती और आवास के साथ-साथ लघु वन उत्पाद (फल-फूल, औषधीय पौधे आदि) एकत्रित करने और उपयोग करने का अधिकार मिला है।

केंद्र एवं राज्य सरकार एवं NTCA की भूमिका

  • केंद्रीय सरकार (MoEFCC/NTCA): राष्ट्रीय टाइगर संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने परियोजना टाइगर को वैधानिक अधिकार प्रदान किए हुए हैं।  
  • राज्य सरकार (तमिलनाडु): तमिलनाडु वन विभाग रिजर्व के प्रतिदिन संचालन, स्टाफ नियुक्ति, अवसंरचना (कैम्प, चौकी, वाहन) और कानून-व्यवस्था का कार्यभार संभालता है। राज्य सरकार NTCA के दिशानिर्देशों के अनुरूप वार्षिक कार्ययोजना तैयार करती है और केंद्रीय कोष का समुचित उपयोग सुनिश्चित करती है।

टाइगर रिजर्व क्या है?

  • टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) उन संरक्षित क्षेत्रों को कहा जाता है, जहाँ बाघों (Tiger) और उनके प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विशेष प्रबंधन और संरक्षण उपाय किए जाते हैं। 
  • यह संरक्षित क्षेत्र प्रोजेक्ट टाइगर के तहत घोषित किए जाते हैं, जिसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा संचालित किया जाता है।

टाइगर रिजर्व घोषित करने की प्रक्रिया :

पहचान:राज्य सरकार बाघों की महत्वपूर्ण आबादी और संरक्षण संभावनाओं वाले संभावित क्षेत्रों की पहचान करती है।

प्रस्ताव प्रस्तुत करना: राज्य सरकार NTCA को एक प्रस्ताव भेजती है, जिसमें क्षेत्र की बाघ आबादी, आवास सुविधाएँ और संरक्षण योजनाएँ जैसे विवरण शामिल होते हैं।

मूल्यांकन: NTCA की तकनीकी समिति प्रस्ताव का मूल्यांकन करती है, क्षेत्र की पारिस्थितिकी, बाघों की आबादी और संभावित मानव-बाघ संघर्ष परिदृश्यों का विश्लेषण करती है।

अनुमोदन: यदि क्षेत्र मानदंडों को पूरा करता है, तो NTCA प्रस्ताव को मंजूरी देता है।

अधिसूचना:राज्य सरकार कोर और बफर ज़ोन को निर्दिष्ट करते हुए आधिकारिक तौर पर क्षेत्र को टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित करती है।

टाइगर रिजर्व के मुख्य घटक:

कोर क्षेत्र (Core Area):

  • यह क्षेत्र पूरी तरह से संरक्षित होता है, जहाँ मानव गतिविधियाँ प्रतिबंधित होती हैं।
  • इसका उद्देश्य बाघों और अन्य वन्यजीवों के लिए निर्बाध आवास प्रदान करना होता है।
  • यह क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित होता है।

बफर क्षेत्र (Buffer Area):

  • यह कोर क्षेत्र के आसपास का क्षेत्र होता है, जहाँ सीमित मानव गतिविधियों की अनुमति होती है।
  • इसमें ग्रामीण आजीविका और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए प्रयास किए जाते हैं।

भारत के बाघ अभयारण्यों का मानचित्र

  • NTCA ने बाघों और उनके आवासों की सुरक्षा के लिए पूरे भारत में 58 बाघ अभयारण्य स्थापित किए हैं।

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बाघ की सुरक्षा स्थिति

  • बाघ (पैंथेरा टाइग्रिस) को IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय श्रेणी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 
  • CITES (वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन):  बाघों को परिशिष्ट में सूचीबद्ध किया गया है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (भारत):  बाघों को अनुसूची के तहत सूचीबद्ध किया गया है।

भारत में बाघों की स्थिति रिपोर्ट

  • “भारत में बाघों की  स्थिति” रिपोर्ट NTCA और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा समय-समय पर जारी किया जाने वाला एक व्यापक दस्तावेज़ है। 

मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

वर्तमान स्थिति: भारत में बाघों की संख्या 2018 में 2,967 से बढ़कर 2022 में 3,682 हो गई।

वार्षिक वृद्धि: बाघों की आबादी में 6% वार्षिक वृद्धि।

वैश्विक हिस्सेदारी: भारत में दुनिया की लगभग 75% बाघ आबादी रहती है।

राज्यवार बाघों की प्रमुख आबादी (2022)

  • मध्य प्रदेश: 785 बाघ (भारत में सबसे ज़्यादा)
  • कर्नाटक: 563 बाघ
  • उत्तराखंड: 560 बाघ
  • महाराष्ट्र: 444 बाघ

कुछ राज्यों में उल्लेखनीय गिरावट:

  • अरुणाचल प्रदेश (29 से 9), ओडिशा (28 से 20), झारखंड (5 से 1), छत्तीसगढ़ (19 से 17), तेलंगाना (26 से 21)।

बाघों की आबादी में क्षेत्रीय रुझान

शिवालिक पहाड़ियाँ और गंगा के मैदान:

  • 804 अनोखे बाघों की तस्वीरें खींची जाने के साथ बाघों की आबादी में वृद्धि।
  • उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे नए क्षेत्रों में विस्तार के लिए उल्लेखनीय।

पश्चिमी घाट:

  • बढ़ते मानवीय पदचिह्न और विकास के कारण बाघों की संख्या में सामान्य कमी।
  • काली (अंशी दांडेली) जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में स्थिर आबादी।

पूर्वोत्तर पहाड़ियाँ और ब्रह्मपुत्र के मैदान:

  • कैमरे पर कैद किए गए विशिष्ट बाघों की संख्या में मामूली कमी (2018 में 219 से 194)।
  • आनुवंशिक विशिष्टता और आवास खतरों के कारण गहन संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता है।

मध्य भारत:

  • बाघों की आबादी में वृद्धि, 1,161 बाघों की तस्वीरें खींची गईं।
  • स्थानीय विलुप्ति को रोकने के लिए कवल, सतकोसिया और सह्याद्री जैसे अभ्यारण्यों के लिए तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।

सुंदरबन:

  • 2022 में 100 बाघों के साथ स्थिर आबादी।
  • संरक्षण के लिए बांग्लादेश के साथ सीमा पार सहयोग का महत्व।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)

पृष्ठभूमि और स्थापना:

उत्पत्ति: इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय  के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में बनाया गया।

कानूनी ढांचा: इसे  वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (2006 का संशोधन) के अनुसार 2005 में स्थापित किया गया।

उद्देश्य: बाघों की आबादी में चिंताजनक गिरावट के जवाब में बाघ संरक्षण पर केंद्रित शासन प्रदान करने के लिए गठित किया गया।

उद्देश्य और जिम्मेदारियां

नीति कार्यान्वयन: प्रोजेक्ट टाइगर और अन्य संरक्षण नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना ।

निगरानी और विनियमन:बाघ अभयारण्यों की निगरानी करें और सुरक्षा के लिए नीतियां लागू करना।

फंडिंग: बाघ अभयारण्यों के प्रभावी प्रबंधन के लिए फंडिंग आवंटित करना।

अनुसंधान और विश्लेषण:बाघ संरक्षण से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान और सर्वेक्षण करना।

संघर्ष शमन:बाघों की आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए मानव-वन्यजीव संघर्ष का समाधान करना।

संरचना और कार्यप्रणाली

संरचना: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री की अध्यक्षता में, प्रधान मंत्री द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष के साथ।

गवर्निंग काउंसिल: इसमें बाघ अभयारण्य वाले राज्यों के मुख्यमंत्री और उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल होते हैं।

तकनीकी सलाहकार समिति: बाघ आवासों के प्रभावी प्रबंधन के लिए तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करती है।

पहल और उपलब्धियाँ

बाघ जनगणना: जनसंख्या प्रवृत्तियों पर नजर रखने के लिए हर चार साल में अखिल भारतीय बाघ अनुमान आयोजित किया जाता है।

बाघ संरक्षण योजनाएँ :प्रत्येक रिजर्व के लिए TSP  तैयार करने और लागू करने में राज्यों का मार्गदर्शन करता है।

एम-स्ट्राइप्स:गश्त और निगरानी को मजबूत करने के लिए बाघों के लिए निगरानी प्रणाली – गहन सुरक्षा और पारिस्थितिक स्थिति (एम-स्ट्राइप्स) की शुरुआत की गई।

गलियारा प्रबंधन: आवास कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने और आवास विखंडन को कम करने के लिए गलियारों के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।

चुनौतियाँ और समाधान

अवैध शिकार और तस्करी: यह अवैध शिकार और अवैध वन्यजीव व्यापार को रोकने के लिए सख्त उपाय लागू करता है।

आवास हानि: यह अतिक्रमण, विकास और वनों की कटाई के कारण आवास हानि को संबोधित करने के लिए राज्यों के साथ सहयोग करता है।

सामुदायिक भागीदारी: यह स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करने के लिए पर्यावरण-विकास परियोजनाओं को प्रोत्साहित करता है।

वैश्विक सहयोग

अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव: ग्लोबल टाइगर फोरम और CITES जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सहयोग करता है।

ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम: सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट (2010) में शुरू किए गए ग्लोबल टाइगर रिकवरी प्रोग्राम में सक्रिय रूप से योगदान देता है।

प्रभाव और महत्व: NTCA ने अपने समर्पित संरक्षण प्रयासों के माध्यम से भारत में बाघों की आबादी 1,411 (2006) से 2,967 (2018) तक बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. बाघ (Panthera tigris) CITES परिशिष्ट-I में सूचीबद्ध है और भारत के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में आता है।
  2. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में 2006 के संशोधन के तहत एक वैधानिक निकाय है और प्रोजेक्ट टाइगर के क्रियान्वयन का समन्वय करता है।
  3. M-STrIPES वह भारत-व्यापी सर्वे है जो हर चार वर्ष में बाघों की जनसंख्या का आधिकारिक अनुमान जारी करता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) और केवल

(d) 1और 3

उत्तर: (c) और केवल

स्पष्टीकरण : कथन गलत है—चार वर्षीय All India Tiger Estimation जनसंख्या अनुमान देता है, जबकि M-STrIPES मुख्यतः गश्त/निगरानी और पारिस्थितिक स्थिति दर्ज करने हेतु उपयोगी प्रणाली है।

 

 

 

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